कहीं बदरंग न हो जाए होली...

कहीं बदरंग न हो जाए होली...

रंगों का त्योहार होली रंग और गुलाल की महत्ता है. अन्य त्योहारों की तरह इस पर्व में भी बाजारवाद पूरी तरह हावी है. होली के मौके पर सजने वाले बाजारों में अब कृत्रिम रंग तथा गुलाल का वर्चस्व हो गया है. यह सब ज्यादा मुनाफा कमाने की होड़ में हुआ है. होली पर्व को लेकर पटना सहित बिहार के सभी बाजार रंगों, गुलालों और पिचकारियों से सज गए हैं, लेकिन इनमें अधिकांश कृत्रिम रंग हैं, जो त्वचा एवं आंखों के लिए नुकसानदेह हैं. बुजुर्गों के अनुसार पूर्व में जहां एक खास तरह के पेड़ की छाल को सुखाकर और पीसकर गुलाल बनाया जाता था, वहीं टेसू और पलाश के फूलों से शुद्ध रंग बनाया जाता था, लेकिन अब ये बातें केवल कहने और सुनने की रह गई हैं.

 
 
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