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तीसरी बार मंदिर का पुजारी ही मूर्ति को तप्तकुंड में फेंककर वहां से चला गया क्योंकि उन दिनों बहुत कम ही लोग यहां आते थे. इसलिए पुजारी को खाने के लाले पड़ गये थे. इस बार मूर्ति तप्तकुंड से निकालकर श्री रामानुजाचार्य द्वारा स्थापित की गई. यहां ठंड की वजह से बहती अलकनन्दा में स्नान करना संभव नहीं है. यात्री स्नान तप्तकुंड में करते हैं. यहां के अन्य दर्शनीय स्थानों में नारद कुंड, पंचशिला, नरसिंहशिला और मंदिर परिसर के भीतर मूर्तियां उल्लेखनीय हैं.
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