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अपमानित सती ने अपने पिता दक्ष की भर्त्सना की और दहकते यज्ञ कुंड में अग्नि की ज्वाला में अपनी योगमाया की शक्ति का आवाहन कर के अपने प्राण त्याग दिए. वही सती कालांतर में पार्वती के रूप में पुन: हिमालय की पुत्री बनकर शंकर जी की अर्धांगिनी बनीं.
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