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- रौशनी खो रहे हैं दीये

रेशमा देवी, कश्मीर कौर और वीरपाल ने कहा कि पहले गांवों में खच्चर की रेहड़ियों पर जाकर लोगों को बर्तन बेचते थे, जिसके बदले पैसे या गेहूं काफी मात्रा में इकट्ठे हो जाते थे जो उनके गुजारे के लिये काफी होती थी. आज यह काम करना कोई आसान नहीं रह गया क्योंकि मिट्टी के बर्तन के दीये अब गावों में खरीद करने के लिए लोग ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं.
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