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- हरतालिका तीज व्रत, कथा और पूजा विधि

नारदजी तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर विष्णुजी के पास गए और उन्हें विवाह तय होने का समाचार सुनाया. परंतु जब तुम्हे इस विवाह के बारे में पता चला तो तुम्हारे दुःख का ठिकाना ना रहा. तुम्हे इस प्रकार से दुःखी देखकर, तुम्हारी एक सहेली ने तुम्हारे दुःख का कारण पूछने पर तुमने बताया कि – ‘मैंने सच्चे मन से भगवान् शिव का वरण किया है, किन्तु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णुजी के साथ तय कर दिया है. मैं विचित्र धर्मसंकट में हूँ. अब मेरे पास प्राण त्याग देने के अलावा कोई और उपाय नहीं बचा.’ तुम्हारी सखी बहुत ही समझदार थी. उसने कहा – ‘प्राण छोड़ने का यहाँ कारण ही क्या है?
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