यमुना नदी : नारों से नहीं इरादों से बचेगी
यमुना दिल्ली में अभी दो महीने बाढ़ के हालात से लबालब थी, सरकारी दस्तावेज के मुताबिक, अब उसमें प्राण वायु ही नहीं बची। इस बीच नया शिगूफा उछल गया कि नदी के किनारे करीब 20 बायोडायर्वसटिी पार्क विकसित कर दिए जाएं तो नदी साफ हो जाएगी।
यमुना नदी : नारों से नहीं इरादों से बचेगी |
इस रिपोर्ट को नागरिक समाज के कुछ लोगों ने तैयार किया है।
यमुना के नाम पर यह कोई पहला शिगूफा नहीं है। इसी साल ऐसे ही नागरिक समाज ने वि पर्यावरण दिवस पर दिल्ली में यमुना के किनारे 22 किमी. लंबी मानव श्रृंखला बनाई थी जिसमें लगभग एक लाख लोग शामिल हुए। मार्च, 2016 में दिल्ली में यमुना तट पर आर्ट ऑफ लीविंग श्रीरविशंकर ने एक बड़ा आयोजन किया था और उसके बाद राष्ट्रीय हरित अभिकरण (एनजीटी) ने उस पर पांच करोड़ रुपये का जुर्माना लगा कर बताया था कि यमुना के कछार, वह भूमि जो कम पानी के कारण गर्मी में रीती रह गई, पर लाखों लोगों की चहलकदमी से वहां के पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान हुआ। इस हानि को ठीक करने में दस साल का समय और 42 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। एक बार फिर एक लाख से अधिक लोग, गाड़ियां, तमाशा जोड़ कर वही गलती दोहरा दी गई।
एक बात समझनी होगी कि यमुना सुधार को लेकर हमारा नजरिया ठीक उस तरह है जैसे ऊपर से नल खुला छोड़ दो और नीचे पोंछा मारो। जरूरी है कि नदी में दूषित जल-मल न जाए। विडम्बना है कि पिछले महीनों में नवरात्रि के बाद चाहे निगम बोध घाट का पुल हो या राजघाट के पीछे या फिर निजामुद्दीन या कालिंदी कुंज, आईटीओ-जहां भी यमुना पर ब्रिज हैं और एनजीटी के आदेश के बाद लोहे की ऊंची जालियां वहां लगाई गई थीं ताकि लोग पूजा सामग्री नदी में न फेंकें, पर सड़क तक पर इस्तेमाल की गई पूजा सामग्री पड़ी थी। इन्हें फेंकने वाले बड़ी-बड़ी कारों में आ रहे थे।
कोई तीन दशक तक अदालती निगरानी के बावजूद दिल्ली में यमुना के हालात नहीं बदले। 2010 में राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी से पहले राजधानी में यमुना नदी को टेम्स की तरह चमका देने के वादे के बाद आम आदमी पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र की बात हो या केंद्र सरकार के दावे की, महज 42 किमी. के दिल्ली प्रवास में यह पावनधारा हांफ जाती है, कई करोड़ रुपये इसकी बदतर हालत सुधार नहीं पाए क्योंकि नदी धन से नहीं मन और आस्था से पवित्र बनती है। दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल कमिटी (डीपीसीसी) की नवम्बर की रिपोर्ट बताती है कि यमुना के पानी में अधिकांश स्थानों पर ऑक्सिजन है ही नहीं। रिपोर्ट के मुताबिक ओखला बैराज पर यमुना में कोई बहाव नहीं है। यमुना एक बार फिर पानी की कमी से इस स्थिति में पहुंच गई है, जबकि बरसात अभी कम से कम आठ महीने दूर है।
अब तक यमुना में 30 फीसद सीवेज का पानी बिना ट्रीट किए गिरता है। यमुना में गिरने वाले 100 फीसद सीवेज को ट्रीट करने के लिए ट्रीटमेंट प्लांट बन रहे हैं, लेकिन इनमें से अधिकतर का कार्य तय वक्त से पीछे चल रहा है। 1993 से अभी तक दिल्ली में यमुना के हालात सुधारने के नाम पर दिल्ली सरकार ने 5400 करोड़ रुपये खर्च किए। इसमें से 700 करोड़ की राशि 2015 के बाद खर्च की गई। विडंबना यह है कि संसदीय और अदालती चेतावनियां, रपटें न तो सरकार के और न ही समाज को जागरूक कर पा रही हैं। यमुना की पावनधारा दिल्ली में आकर नाला बन जाती है। आंकड़ों और कागजों पर तो इस नदी की हालत सुधारने को इतना पैसा खर्च हो चुका है कि यदि उसका ईमानदारी से इस्तेमाल किया जाता तो उससे एक समानांतर धारा की खुदाई हो सकती थी।
दिल्ली में यमुना को साफ-सुथरा बनाने की कागजी कवायद कोई 40 सालों से चल रही है। अस्सी के दशक में एक योजना नौ सौ करोड़ की बनाई गई थी। दिसम्बर, 1992 में भारत सरकार ने यमुना को बचाने के लिए जापानी संस्था ओवरसीज इकोन्ॉमिक कॉरपोरेशन फंड ऑफ जापान से 403 करोड़ की मदद ली और 1997 तक कार्य पूरा करने का लक्ष्य रखा था लेकिन कागजी लहरें ही उफनती रहीं। 14 साल पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निर्देश पर यमुना नदी विकास प्राधिकरण (वाईआरडीए) का गठन किया गया था, जिसमें दिल्ली के उपराज्यपाल की अध्यक्षता में दिल्ली जल बोर्ड, प्रदूषण बोर्ड सहित कई सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों को साथ लेकर तकनीकी सलाहकार समूह का गठन हुआ था।
उस समय सरकार की मंशा थी कि कानून बना कर यमुना में प्रदुषण को अपराध घोषित कर राज्यों और स्थानीय निकायों को इसका जिम्मेदार बना दिया जाए। लेकिन सब कुछ कागजों से आगे बढ़ा ही नहीं। हरियाणा सरकार इस्रइल के साथ मिल कर यमुना के कायाकल्प की योजना बना रही है, और इस दिशा में हरियाणा सिंचाई विभाग ने अपने सर्वे में पाया है कि यमुना में गंदगी के चलते दिल्ली में सात माह पानी की किल्लत रहती है। दिल्ली में यमुना, गंगा और भूजल से 1900 क्यूसेक पानी प्रति दिन प्रयोग में लाया जाता है। यमुना में इस इसके पानी का 60 फीसद यानी करीब 1100 क्यूसेक सीवरेज का पानी एकत्र होता है। यदि यह पानी शोधित कर यमुना में डाला जाए तो यमुना निर्मल रहेगी और दिल्ली में पेयजल की किल्लत भी दूर होगी।
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