जयललिता : जीता मन, जीता विश्वास

Last Updated 07 Dec 2016 06:03:52 AM IST

अम्मा नहीं रहीं. लेकिन उनके लिए ‘अमर रहें अम्मा’ कहना ज्यादा उपयुक्त रहेगा, जिनका नाम इतिहास में शानदार अक्षरों में दर्ज हो गया है.




जयललिता : जीता मन, जीता विश्वास

जिनने अपने लोगों के साथ अपार स्नेह रखा तो प्रतिद्वंद्वियों के साथ हद दरजे की नापसंदगी भी. जिनने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के तौर पर पूरी सख्ती के साथ बागडोर संभाली और जिनका 5 दिसम्बर, 2016 की रात्रि देहावसान हो गया. उन्हें लोकतांत्रिक व्यवस्था में निरंकुश नेता के रूप में देखा गया. हालांकि, उन्होंने पूरे दबदबे के साथ शासन किया. लेकिन एक बार साक्षात्कार में उनने कहा था, ‘जीवन मेरे लिए एक बड़ी लड़ाई और बड़ा संघर्ष रहा है.’

वह  ‘पुराथी थलाएवी’ (क्रांतिकारी नेता) नाम को सार्थक करते हुए राज्य के एक सर्वाधिक जीवंत और विवादास्पद राजनेता के रूप में उभरीं. भारतीय राजनीति के आकाश में उनने अपना एक अलग मुकाम हासिल किया. उन्होंने तमिलनाडु में अनेक योजनाओं, जिन्हें उनके आलोचक लोकलुभावन करार देते थे, को क्रियान्वित करके राज्य के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने ग्रामीण और शहरी गरीबों को हमेशा अपनी योजनाओं और कार्यक्रमों के केंद्र में रखा.

रियायती दामों वाले खान-पाने केंद्र खोले, हजारों स्कूली छात्रों को लैपटॉप मुहैया कराए. ग्रामीण और शहरी परिवारों को फूड मिक्सर व ग्राइंडर से लेकर महिलाओं को विवाह के अवसर पर मंगलसूत्र मुहैया कराने जैसी अनेक लोक-लुभावन योजनाओं को मूर्ताकार किया. तमिलनाडु में अनेक परियोजनाएं उनके नाम पर आरंभ की गई. इनमें रियायती दाम वाली खान-पान की अम्मा कैंटीन हैं, तो अम्मा बोटल्ड पानी, अम्मा नमक, अम्मा फाम्रेसी और अम्मा सीमेंट भी हैं. ये तमाम योजनाएं और उनकी कार्यशैली लोकतांत्रिक प्रणाली में कहीं-न-कहीं निरंकुशता के निकट पहुंचती-सी प्रतीत हुई. लेकिन उनके  समर्थकों को देख लोग अचरज में पड़ जाते थे.

जयललिताके अनेक समर्थकों ने उनके प्रति अपनी वफादारी दिखाने के लिए गरम कोयले पर नंगे पैर चलने या अपने खून से उनकी तस्वीर बनाने जैसे काम करके सबको हैरत में डाल दिया था. उनकी पार्टी के पदाधिकारी हमेशा उनके सामने दंडवत रहते थे. उन्हें जब भी राजनीतिक संकटों का सामना करना पड़ा तब उनके समर्थक खुद को आग लगाकर जान दे देने को जिस तरह आमादा हो जाते थे, वह किसी से छुपा नहीं है. उन्होंने अपनी इस छवि को कायदे से तराशा भी. आज तमिलनाडु में हर कहीं उनके आदमकद कटआउट देखने को मिलते हैं.

बेशक, राजनीति में उन्होंने खासे संघर्ष से अपनी जगह बनाई. वह भी उस स्थिति में जबकि वह जन्मना उस ब्राह्मण समुदाय से थीं, जिसके खिलाफ तमाम द्रविड़ पार्टियों ने खासकर उनके कड़े प्रतिद्वंद्वी करुणानिधि के नेतृत्व में तीखी लड़ाई लड़ी. हालांकि आलोचक उनकी इस बात के लिए तीखी आलोचना करते थे कि उनने व्यक्तिवादी राजनीति को प्रश्रय दिया और राज्येमें भ्रष्टाचार बढ़ाया. मगर इसके बावजूद उनका आभामंडल इस गजब का रहा कि राज्य में लगातार दूसरी बार विधान सभा में बहुमत हासिल करके इतिहास रच डाला. अन्नाद्रमुक की अध्यक्ष के रूप में वह चार बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री चुनी गई. वह भी तमाम आरोपों और जेलबंदी के बावजूद.

जयललिता (68) तत्कालीन मैसूर राज्य में जन्मी थीं. पिता वकील थे. जब वह मात्र दो वर्ष की थीं, तभी उनके पिता का निधन हो गया था. स्कूली शिक्षा, संगीत और नृत्य की तालीम हासिल करके उन्होंने अभिनेत्री के रूप में प्रशिक्षण लेना आरंभ कर दिया. बाद के तीन दशक में वह भारत की सर्वाधिक लोकप्रिय अभिनेत्री के रूप में उभरीं. करीब 140 फिल्मों में उन्होंने अभिनय किया. इस करिश्माई शख्सियत का राजनीति से परिचय अभिनेता से मुख्यमंत्री बने एमजी रामचंद्रन ने कराया, जिनके साथ वह कई फिल्मों में अभिनय भी कर चुकी थीं. 1989 में वह पहली बार चुनाव जीतकर विधान सभा पहुंचीं. उसी के साथ उन्होंने ऑल इंडिया अन्नाद्रविड़ मुनेत्र कड्गम (एआईएडीएमके) की बागडोर भी संभाल ली.

इसके एक साल बाद ही वह पहली बार मुख्यमंत्री बनीं. उनके पहले कार्यकाल का 1996 में बेहद निराशाजनक अंत हुआ. उनकी पार्टी विधान सभा की मात्र चार सीटें जीत सकी. खुद जयललिता अपनी सीट नहीं पाई थीं. सत्तारूढ़ द्रमुक ने तमाम जांच उनके खिलाफ कराई. उनके परिसरों पर छापेमारी में पुलिस ने हीरा-जड़ित स्वर्णाभूषण, दस हजार से ज्यादा साड़ियां और साढ़े सात सौ जूते बरामद करने का दावा किया. उन पर गांवों के लिए 40 हजार रंगीन टीवी खरीदने की योजना में रित लेने का आरोप लगाया गया. इस मामले में उन्हें तीस दिन तक जेल में रहना पड़ा. बाद में उनकी पार्टी ने शानदारी जीत हासिल की और वह फिर से मुख्यमंत्री बनीं.

बाद में उन पर शराब बिक्री में अनियमितता जैसे आरोप भी लगे लेकिन उनका करिश्मा धुंधला नहीं होने पाया. अप्रैल, 2011 में वह तीसरी बार मुख्यमंत्री चुनी गई. उनके कहा जाने लगा कि उनकी नजर राष्ट्रीय राजनीति में भूमिका निभाने पर है. इसी बीच, 2014 के लोक सभा चुनाव में उनके समर्थकों ने उनसे प्रधानमंत्री पद के लिए प्रयास करने का सुझाव दिया. लेकिन वह तैयार नहीं थीं. इसी साल वह भारत की पहली मुख्यमंत्री बनीं, जिसे चार साल की जेल की सजा के चलते अयोग्य करार दे दिया गया.

बेशकीमती आभूषण और लक्जरी कारें जुगाड़ने की अभियुक्त होने के चलते पद छोड़ना पड़ा. लेकिन आठ महीने बाद ही 2015 में उन पर अभियोग वापस ले लिया गया और कुछेक दिनों के भीतर वह फिर से तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बन गई. इसके एक साल बाद ही उन्होंने पूर्ण बहुमत हासिल करते हुए अपने आलोचकों का मुंह बंद कर दिया. और उनकी पार्टी  सत्तारूढ़ हुई. वह फिर से चौथी बार मुख्यमंत्री बन गई. उन्होंने कहा, ‘दस दलों का गठबंधन मेरे खिलाफ था, मेरा कोई गठबंधन नहीं था फिर भी लोगों ने मुझमें विश्वास जताया है, और मेरा भी लोगों में पूरा विश्वास है.’ जयललिता के समर्थकों का कहना है कि उन्होंने तमिलनाडु को आर्थिक रूप से सर्वाधिक समृद्ध राज्य बनाने में अहम भूमिका निभाई. लेकिन उनके आलोचकों के गले यह बात नहीं उतरी.
(लेखक तमिल मूल के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

श्री कृष्ण
लेखक


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