सेना से प्यार-नफरत का खेल

Last Updated 23 Jul 2016 07:07:15 PM IST

सर्वाधिक दुखद है कि सुरक्षा बलों, जो कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए कड़ा संघर्ष कर रहे हैं, की दुर्दशा पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है. सच तो यह है कि अर्धसैनिक बलों, पुलिस और सेना को पृथकतावादियों, आतंकवादियों और पाकिस्तान में उनके हैंडलर्स द्वारा बरपाई जा रही हिंसा का सामना करना पड़ रहा है.




सेना से प्यार-नफरत का खेल

बीते वर्षों खासकर हाल के महीनों और घाटी में अभी जारी संकट के दौरान बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों, पुलिस और सेना के जवान आतंकी घटनाओं में शहीद हुए हैं. सड़कों पर प्रदर्शनों के दौरान अर्धसैनिक बलों के एक हजार से ज्यादा जवान घायल हुए हैं. गश्ती दलों और बंकरों को पत्थरों, पेट्रोल बमों और आग्नेय शस्त्रों का इस्तेमाल करके निशाना बनाया जा रहा है. बीते दस दिनों के दौरान हालिया झड़पों में करीब सौ सुरक्षा ठिकानों पर बेकाबू भीड़ ने हमले किए हैं. 

सुरक्षा बलों पर हमलों का दुखद पहलू यह है कि 8 जुलाई, जब एक आतंकवादी और उसके दो साथियों को मुठभेड़ में मार गिराया गया, के बाद से सुरक्षा बलों पर लगातार हमले किए जा रहे हैं. अनेक स्थानों पर हथियार छीनने और जवानों पर हमले करने के लिए लोगों की भीड़ जबरन सुरक्षा बल के प्रतिष्ठानों में घुस आई. दो थानों डमहल हांजीपोरा और अचाबल, कोकरनाग तहसील कार्यालय और पुलिस चौकी कुंड, काजीकुंड, रेंज ऑफिस डीएच पोरा, कोर्ट काम्पलेक्स डीएच पोरा, पुलिस चौकी नरबल तथा डीएच पोरा में एक अग्नि शमन वाहन को आग के हवाले कर दिया गया. उसी दिन डीएच पोरा थाने से भीड़ ने हथियार लूट लिए. थाने में मौजूद पुलिसकर्मियों पर गोली चलाई गई. डमहल हांजी पोरा थाने के तीन पुलिसकर्मी लापता हो गए. उनका अभी तक कुछ पता नहीं चला है.

झड़पों के दौरान संगम, सीर, गोपालपोरा, मत्तन, लारनू कोकरनाग, दूरू, वेस्सु, जंगलात मंडी बेहीबाग, कुलगाम, बारजुला, अवंतीपुरा, पुलवामा, लितर पुलवामा, माइनॉरिटी पिकेट हॉल पुलवामा, नेवा पुलवामा, पत्तन, बारामुला, पलहलन, गंटामुला, शीरी, करीरी, बांदीपोरा, लालपोरा, बोमी नवगाम, बटामालु, पुलिस चौकी हुमहामा और हुमहामा स्थित अधिकारियों की मैस को बुरी तरह नुकसान पहुंचाया गया. इसके अलावा, बेकाबू भीड़ ने जीआरपी गार्ड, आरपीएफ बैरक, बिजबेहड़ा रेलवे स्टेशन के साथ लास्सीपुरा में एक वाहन को आग लगा दी.

सड़कों पर उतरी भीड़ ने बरपाई हिंसा
हिंसा के पहले दिन सड़कों पर प्रदर्शनों के लिए उतरे लोगों ने कम से कम 96 बलकर्मियों को गंभीर रूप से घायल कर दिया. एक प्रमुख दुखद घटना में अफरोज अहमद नाम के पुलिसकर्मी को उसके सरकारी वाहन समेत झेलम नदी में धकेल दिया गया. बिजबेहड़ा के निकट आग की सूचना पर पहुंच रहे अग्निशमन सेवा के वाहन को बुरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया गया. उपद्रवियों ने गाची मोहल्ला में सीआरपीएफ की टुकड़ी पर पेट्रोल बम फेंका. नटनुसा, कुपवाड़ा में सात सुरक्षाकर्मी गोलियों के छरे से गंभीर रूप से घायल हो गए. वे अस्पताल में उपचाराधीन हैं. ड्रागमुला कुपवाड़ा में उपद्रवी भीड़ ने सेना के शिविर पर हमला करके हथियार छीनने की कोशिश की. घटना में पुलिस और सीआरपीएफ के अनेक जवान घायल हो गए. बांदीपोरा पुलिस थाने के गार्ड रूम को आग के हवाले कर दिया गया. इस घटना में अनेक जवान घायल हो गए.     
 
हमारे सुरक्षा बलों को बेकाबू भीड़ पर नियंत्रण करने में खासी परेशानियां हो रही हैं, जबकि लोग सोचते हैं कि सुरक्षा बलों ने नागरिक आबादी पर आतंक का कहर  बरपा दिया है. लेकिन सच्चाई यह है कि अपनी जान को खतरे के बावजूद सुरक्षा बल ज्यादा से ज्यादा उपद्रवियों को काबू कर रहे हैं ताकि लोगों की जान-माल की हिफाजत हो सके. राष्ट्रवादी ताकतों को युवाओं और पृथकतावादी नेतृत्व को आत्मावलोकन करने को कहना चाहिए कि डय़ूटी पर मुस्तैद जवानों को निशाना बनाने से उन्हें क्या हासिल होता है? बलों और उनके वाहनों पर हमला करने की कोई तुक नहीं है. उस समय भी नहीं जब वे सख्ती कर रहे हों. विरोध प्रदर्शन करने वाले अपने मसले सक्षम अधिकारियों के समक्ष क्यों नहीं उठाते? इसके बजाय वे जनता की सुरक्षा और कानून-व्यवस्था बनाए रखने को तैनात जवानों को निशाना बना रहे हैं. राष्ट्रवादी ताकतों का सवाल है कि सुरक्षा बलों और सेना के लिए प्रदर्शनकारियों का दिल क्यों नहीं पसीजता जो कश्मीर के इस संकट में सर्वाधिक बुरी तरह से प्रभावित हैं.

पूछा जा सकता है कि कश्मीर में भारतीय सेना के प्रति प्यार और नफरत की यह मनस्थिति क्यों है? वर्ष 2005 में जब उत्तर कश्मीर और जम्मू के कुछ हिस्सों में भूकंप आया था, तब सर्वाधिक पीड़ित इलाकों उरी, कुपवाड़ा, करनाह और पुंछ की नागरिक आबादी को खासे जान-माल का नुकसान हुआ था. इन लोगों ने मांग की थी कि जो भी राहत सामग्री उन तक पहुंचाई गई थी, उसे सेना के माध्यम से वितरित किया जाए. नागरिक प्रशासन को लेकर वे संशय में थे क्योंकि कुछ स्थानों पर राहत सामग्री में घपला करने की खबरें आई थीं. दरअसल, लोगों का सेना पर विश्वास जम गया था क्योंकि सेना ने भूकंप पीड़ितों को उन इलाकों तक भी पहुंच कर राहत कार्य को अंजाम दिया था, जहां नागरिक प्रशासन नहीं पहुंच पाया था. तंगधार इलाके में राहत पहुंचाते समय कुछ सैनिकों को जान से हाथ धोना पड़ा था.



सैनिकों के साहस की मुक्तकंठ से प्रशंसा
2005 के भूकंप पीड़ित अच्छी तरह जानते हैं कि किस प्रकार बहादुर सैनिकों और सैन्य अधिकारियों ने आगे बढ़कर उस कठिन समय में उन्हें राहत पहुंचाई थी. अनेक जगहों पर सैना के जवानों के इस साहस की मुक्तकंठ से सराहना की गई थी. आखिर, वह प्रेम इतना खट्टा कैसे हो गया कि वही लोग भीड़ के रूप में आकर सेना के शिविरों पर हंडवाड़ा में एक छात्रा के साथ कथित बलात्कार की खबर पर हमला करने लग पड़े. सोगम, कुपवाड़ा, लांगेट और अन्य स्थानों पर हमले किए गए. इस  बात तक को नजरअंदाज कर दिया गया कि कथित पीड़िता ने स्वयं ही कहा कि कुछ युवा सेना की छवि को धूमिल करना और उसके साथ  छेड़छाड़ करना चाहते थे. कभी  गरम कभी नरम संबंध बनाम सेना आज कश्मीर का डरावना सच बन चुका है. मौलवियों, गांवों के वरिष्ठों और नागर समाज के अन्य हिस्सों ने जब सेना के लिए \'वतन के सेर\' कार्यक्रम करने की ठानी तो किसी को एतराज नहीं था, लेकिन निहित स्वार्थी तत्वों ने महिलाओं को अपनी हवस का शिकार बनाकर उसकी आड़ में सेना को बदनाम करने के प्रयास किए. यह सब उन्होंने सीमा पार बैठे अपने आकाओं के इशारे पर किया.

कितने लोगों ने सेना के उन कार्यक्रमों का विरोध किया जिनके तहत स्कूली छात्रों को कंप्यूटर वितरित किए गए थे. सड़कों का निर्माण किया गया था. स्वास्थ्य शिविर आयोजित किए गए थे. प्राकृतिक आपदाओं के दौरान बचाव और राहत कार्य किए गए. कहीं आग लग जाए या किसी जगह पर कोई दुर्घटना घट जाए तो सबसे पहले सेना के जवान ही वहां पहुंचते हैं. नागरिक जब भी संकट में घिरते हैं तो मात्र एक फोन करने भर पर सैनिक बचाव और राहत के लिए पहुंच जाते हैं.

कश्मीर के लोग जानते हैं कि किस प्रकार सैनिकों की वर्दी पहने \'अमानवीय आतंकवादियों\' के चंगुल में महिलाएं फंस जाती हैं. जानते हैं कि सैनिकों के रूप में आए लोग किस प्रकार मासूमों का अपहरण करके उन्हें मार डालते हैं. जानते हैं कि आतंकवादी ज्यादतियां करने के बाद बड़ी सफाई से दोष सेना के मत्थे मढ़ देते हैं, ताकि  सेना की छवि खराब हो. उसकी बदनामी हो. सेना के खिलाफ नफरत-प्यार के मामले में पृथकतावादी और कथित \'मुख्यधारा वाले\' एक ही सफे पर हैं. मुख्यधारा के नेता स्थानीय पुलिस पर कम यकीन करते हैं लेकिन सुरक्षा बलों के खिलाफ सबसे ज्यादा बोलते हैं. हालांकि वे गैर-राज्य के जवानों को अपनी सुरक्षा की दृष्टि से पहली प्राथमिकता देते हैं.

2014 में आई बाढ़ की घटना छल-कपट से भरी अधम याद दिला देती है, जब राहत पाए बाढ़ पीड़ितों ने सेना पर राहत सामग्री पहुंचाने में \'भेदभाव\' करने का आरोप लगाया था. कुछ लोगों ने दावा किया कि पीड़ित क्षेत्रों में फंसे लोगों को हेलीकॉप्टर से निकालते समय चुन-चुन कर लोगों को निकाला जा रहा था. पृथकतावादी बेशर्मी से सेना की नावों से चुराई गई राहत सामग्री को बांटते हुए कुछ फोटो में दिखलाई पड़े. चुराई गई राहत वस्तुओं के साथ यासीन मलिक कुछ पीड़ित इलाकों में दिखाई दिए. वे चुराई गई राहत सामग्री के साथ अपनी तस्वीरें खिंचवाने के लिए कैमरे के सामने पोज दे रहे थे. सेना के प्रति इस प्रकार के व्यवहार के बावजूद पीड़ितों ने प्रधानमंत्री से आग्रह किया कि मदद उनके खातों में पहुंचाई जानी चाहिए. स्थानीय एजेंसियों के जरिये नहीं बंटवाई जाए. यह तो स्थानीय लोगों में ही परस्पर विश्वास की कमी को दिखाता है. इसके बावजूद कोई मौका नहीं चूका जाता जब सामूहिक रूप से सेना के खिलाफ उंगली न उठाई जाती हो.

 

 

कुंदन कश्मीरी
अध्यक्ष, कश्मीरी पंडित कान्फ्रेंस


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment