खतरनाक आतंकवादी को बताया जाना आइकन

Last Updated 23 Jul 2016 03:51:47 PM IST

बीती नौ जुलाई को दक्षिण कश्मीर के कोकरनाग में भारतीय सुरक्षा बलों और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने हिज्बुल मुजाहिदीन के पोस्टर ब्वॉय खतरनाक आतंकवादी बुरहान वानी को मार गिराया.


खतरनाक आतंकवादी बुरहान वानी (फाइल फोटो)

वह सर्वाधिक वांछित आतंकवादियों में शुमार था, और उसके सिर पर दस लाख रुपये का इनाम था. उसने सुरक्षा बलों के जवानों समेत दस से ज्यादा लोगों की हत्या की थी. हिज्बुल मुजाहिदीन का कश्मीर में कमांडर होने के साथ ही वह लश्कर-ए-तैयबा के मुखिया हाफिज सईद, जो 9/11 को मुंबई में भीषण हमलों का मास्टरमाइंड था, के भी संपर्क में था. बुरहान वानी ने सोशल नेटवर्किग साइट्स का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करते हुए अपनी मंशा जगजाहिर कर दी थी. बराबर कहता था कि भारतीय सेना उसकी \'प्रमुख शत्रु\' थी, और वह तथा उसका प्रशिक्षित आतंकवादियों का गुट कश्मीर पुलिस के जवानों को कतई नहीं छोड़ेंगे क्योंकि वे \'कश्मीर पर काबिज ताकतों की मदद कर रही है.\'

पहले से पता था कि वानी की मौत के खिलाफ पाकिस्तान कश्मीर-स्थित अपने एजेंटों तथा सईद अली शाह गिलानी, मीरवाइज उमर फारूक तथा यासीन मलिक जैसे भाड़े के लोगों के जरिए भारत-विरोधी माहौल बनाने से नहीं चूकेगा. यह भी जाहिर था कि मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के कड़े राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी जम्मू-कश्मीर विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष एवं नेशनल कांफ्रेंस के कार्यकारी अध्यक्ष उमर अब्दुल्ला और हताशा से जूझ रहीं सोनिया गांधी कश्मीर में माहौल को और बिगाड़ने का प्रयास करने से पीछे नहीं रहेंगे. उनका एकमात्र एजेंडा था कि ऐसे हालात बना दिए जाएं कि नई दिल्ली को कश्मीर छोड़ने की नौबत आ जाए.

दूसरे शब्दों में उनका नापाक मंसूबा यह था कि स्थिति का फायदा इस तरह से उठाया जाए कि भारत का सांप्रदायिक आधार पर एक और विभाजन हो जाए. (भारत विश्व में अकेला ऐसा देश है, जिसका मुस्लिम-बहुल आबादी वाले विशेष क्षेत्रों के आधार पर 1947 में विभाजन हुआ था. जम्मू-कश्मीर भी ऐसा ही राज्य है, जहां इसकी कुल जनसंख्या का करीब 60 प्रतिशत मुस्लिम हैं).

माहौल खराब करने का प्रयास
वैर भाव रखने वाला हमारा पड़ोसी और कश्मीर में उसके एजेंटों के साथ ही तथाकथित मुख्यधारा के कश्मीरी नेता भी विरोध करने पर आमादा इस दस्ते से आ मिले हैं. माहौल खराब करने का अभियान स्थानीय मीडिया ने छेड़ा और दिल्ली स्थित कुछ मीडिया घरानों ने इस काम में उनका बढ़-चढ़कर साथ दिया. इन सबने वानी को न केवल आतंकवादी से नायक बना डाला बल्कि ऐसे हालात भी बना दिए जिससे सरकार के सामने इसके सिवा कोई विकल्प नहीं बचा कि उसकी मौत के तत्काल बाद कश्मीर में कर्फ्यू लगाए. तभी से कर्फ्यू लगा हुआ है.

वानी को \'शहीद\' घोषित किया जाना
तमाम कारण हैं जिनके चलते माना जा सकता है कि पाकिस्तान, जिसने बुरहान वानी को \'कश्मीर का हीरो और शहीद\' घोषित किया है, और कश्मीरी अलगाववादियों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए 20 जुलाई को \'काला दिवस\' मनाया था तथा \'मुख्यधारा\' के उमर अब्दुल्ला, जिन्होंने इस खतरनाक आतंकवादी को कश्मीर का \'आइकन\' बताया था, जैसे कश्मीरी नेता घाटी में समस्याओं को सुलगते रखना चाहते हैं. कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते.

केंद्र और राज्य सरकार की मशीनरी को बेहद सर्तक तथा राज्य में तैनात सुरक्षा बलों को तमाम दिक्कतों के बीच चौबीसों घंटे चौकस बने रहना होगा ताकि पाकिस्तान के नापाक मंसूबे पूरे न होने पाएं. यह भी सुनिश्चित हो सके कि कश्मीरी पृथकतावादी भारत-तोड़ो अभियान में कामयाब न होने पाएं. यह भी कि ऐसे तत्वों को शिकस्त दी जा सके. अभी कश्मीर में युद्ध जैसी स्थिति है, और इसे इसी के हिसाब से सुलटना होगा. दुविधाग्रस्त और कोमल मनस्थिति या कमजोर संकेत दिए जाने से इस नाजुक समय में राष्ट्र के शत्रुओं को ही सहायता मिलेगी.

नीति-निर्माताओं की बेरुखी 
दुख की बात है कि कश्मीर पर राज्य सभा में 20 जुलाई और लोक सभा में 21 जुलाई को हुई चर्चा उत्साह जगाने वाली नहीं थीं. दोनों तरफ के सदस्यों में से किसी ने भी जानने की कोशिश तक नहीं कि कश्मीर को क्या बीमार बनाए हुए है. बेवहज का शोर-शराबा था, ऐसी नीति लाए जाने के प्रयास थे कि जिनसे कश्मीरी मुस्लिमों को एक अलग ही नस्ल समझा जाने लगेगा. जहां विपक्ष ने एक स्वर में कश्मीर को ज्यादा से ज्यादा राजनीतिक रियायतें दिए जाने की बात कही वहीं सत्ता पक्ष के सदस्यों ने कश्मीर पर घिर आए संकट पर ज्यादा न कहते हुए \'कश्मीरियत\' की बात कही जिसके चलते घाटी से करीब-करीब तमाम कश्मीरी हिंदुओं का पलायन हो चुका है, और जो कश्मीर में तमाम अफरा-तफरी का सबब बन गया.  



इतना ही नहीं, हमारे नीति-निर्माताओं ने सुरक्षा बलों की आलोचना करने में कोई शब्द बचाकर नहीं रखा. कहा कि सुरक्षा बल राज्य में कड़ी सख्ती दिखा रहे हैं. तनिक भी ख्याल नहीं किया कि किन हालात में सुरक्षा बलों को राज्य में नापाक ताकतों से जूझते हुए भारत के लिए कश्मीर को बचाए रखने में जुटे रहना पड़ रहा है. संसद में चर्चा से महसूस हुआ कि हमारे नीति-निर्माता सेना और सुरक्षा बलों, जिन्हें खासे दमखम से समय के तकाजे के अनुसार और प्रतिष्ठान के निर्देशानुसार मोर्चा संभालना पड़ रहा है, के कार्यकलाप से संतुष्ट नहीं हैं, बल्कि महसूस यही हुआ कि हमारे नीति-निर्माता दूसरी तरफ हैं.

महत्त्वपूर्ण बात यह है कि भारत सरकार और भारत राष्ट्र जुदा अंदाज में प्रतिक्रिया जतला रहे हैं. रक्तरंजित भारत राष्ट्र चाहता है कि तमाम उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल करते हुए घाटी में शांति की स्थापना करते हुए पाकिस्तान को शिकस्त देने की कोई अति-प्रभावी नीति लागू की जाए जबकि भारत सरकार कमजोर और विनीत सरकार की भांति भंगिमा अपनाए हुए है. सोशल नेटवर्किग साइट्स के जरिए स्थिति पर सरकार के प्रति नाखुशी जतला कर भारत राष्ट्र देश के कर्ता-धर्ताओं से खुश नहीं हैं. सरकार के बाहर शायद ही किसी ने कश्मीर और पाकिस्तान तथा घाटी में आतंकवाद संबंधी घटनाओं पर आधिकारिक रुख से हटकर कुछ बोला हो.

हर शुक्रवार कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों की नाक के नीचे आईएसआईएस तथा पाकिस्तान के ध्वज फहराए जाते हैं. भारत राष्ट्र न केवल नई दिल्ली और  जम्मू-कश्मीर की सरकार के खिलाफ है, बल्कि वह विपक्ष से भी खफा है.  

 

 

प्रो. हरिओम
पूर्व डीन, फेकल्टी ऑफ सोशल सांइसेज, जम्मू यूनिवर्सिटी


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