गणतांत्रिक भावना पर चोट

Last Updated 29 Jun 2016 05:46:38 AM IST

राज्य सभा में प्रतिनिधित्व का चरित्र तेजी से बदल रहा है. राज्यों के प्रतिनिधित्व वाली संस्था की जगह यह राजाओं के प्रतिनिधियों वाली संस्था बनती जा रही है.




गणतांत्रिक भावना पर चोट

भारतीय जनता पार्टी अपने इरादे के अनुसार अम्बेडकर के संविधान के बजाय अपने राष्ट्रवाद के अनुसार राज्य सभा के चरित्र को एक हद तक बदलने में सफल रही है. कांग्रेस उसके पीछे चल रही है. राज्य सभा की कुल सीटों में 57 सीटों यानी राज्य सभा की कुल सीटों में से 23 प्रतिशत सीटों के लिए चुनाव हुए. संविधान के मुताबिक राज्य सभा के लिए भारतीय नागरिकों को चुनाव लड़ने का अधिकार है लेकिन लोक सभा और राज्य सभा के चुनाव में एक बुनियादी फर्क ये रहा है कि राज्य सभा के लिए राज्यों का स्थायी निवासी होना अनिवार्य रहा है. इसीलिए राज्य सभा को राज्यों के प्रतिनिधियों की परिषद कहा जाता है. लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग की सरकार ने राज्यों के निवासी के प्रावधान को खत्म कर दिया.

इस संशोधन को पत्रकार कुलदीप नैय्यर ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने संसद के संशोधन में कोई हस्तक्षेप नहीं किया. इसके बाद राज्य सभा तेजी से राज्यों की प्रतिनिधि संस्था के बजाय राजनीतिक राजाओं के प्रतिनिधियों की संस्था होती जा रही है. किस हद तक राज्य सभा में राज्यों के स्थायी निवासी के बजाय दूसरे राज्यों के प्रभावशाली लोगों का कब्जा बढ़ा है, इसे आंकड़े में देखकर समझा जा सकता है. राजनीतिक दलों के नेता अपने किसी भी चहेते को देश के किसी भी राज्य से बतौर प्रतिनिधि चुनने के लिए अपने विधायकों पर थोप देते हैं. इनमें भारतीय जनता पार्टी अव्वल है.

राज्य सभा के 57 सीटों के लिए हुए चुनाव में भाजपा ने नौकरशाहों की तरह अपने उम्मीदवारों को एक राज्य से दूसरे राज्य में बतौर उम्मीदवार स्थानांतरित किया. केन्द्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू को कर्नाटक के बजाय राजस्थान भेज दिया. क्योंकि वे तीन बार कर्नाटक से राज्य सभा के लिए चुने जा रहे थे और उनके खिलाफ कर्नाटक के लोगों का गुस्सा इतना बढ़ गया कि उन्होंने इस बार के चुनाव में उनकी उम्मीदवारी को कतई स्वीकार नहीं करने की चेतावनी दे दी. उनके खिलाफ शिकायत थी कि वे आंध्र प्रदेश के हैं और कर्नाटक के प्रतिनिधि होते हुए उन्होंने कभी भी कर्नाटक की सुध नहीं ली. यह नौकरशाहों की तरह का स्थानांतरण है. वेंकैया नायडू की जगह पर केन्द्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण को  वहां से उम्मीदवार बना दिया गया जबकि वे भी कर्नाटक की नहीं हैं. इससे पहले वे आंध्र प्रदेश से चुनी गई थीं. निर्मला सीतारमण ने अपनी उम्मीदवारी की घोषणा के वक्त ये आासन दिया है कि वे कन्नड़ सीखेंगी और कर्नाटक के हितों का ध्यान रखेंगी. आंध्र के जयराम रमेश को कांग्रेस ने कर्नाटक से उम्मीदवार बना दिया है.

राज्य सभा के पिछले चुनाव में उम्मीदवारों के नामों पर गौर करें तो जो जितना गरीब राज्य है उसी के अनुपात में उसकी राज्यसभा की सीटें बाहरी लोगों के लिए एक तरह सुरक्षित कर दी गई है. झारखंड की 6 सीटों में पचास प्रतिशत सीटें बाहरी लोगों के कब्जे में चली गई है. वहां से आरजेडी के हरियाणा के व्यापारी प्रेमचंद गुप्ता, भाजपा के दिल्ली में पत्रकार एमजे अकबर और गुजरात के अमीर परीमल नाथवानी रहे हैं. इस बार झारखंड से दो सीटों के लिए चुनाव हुए और इस बार भाजपा के एमजे अकबर की जगह केन्द्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी को बतौर राज्य सभा सदस्य भेजा गया है. अकबर को मध्य प्रदेश भेज दिया गया.

मध्य प्रदेश में तीन सदस्य चुने गए हैं. मध्य प्रदेश की 36 प्रतिशत सीटें अब तक बाहरी लोगों के कब्जे में रही है. वहां कुल राज्य सभा की 11 सीटें हैं. राज्यों को राज्य सभा की सीटें उसकी जनसंख्या के अनुपात में निश्चित की गई है. झारखंड की पचास प्रतिशत सीटों पर बाहरी लोगों को थोपा गया है तो असम में यह हिस्सा चालीस प्रतिशत है. दिल्ली एक मात्र ऐसा राज्य है जहां से सौ प्रतिशत बाहरी लोग ही राज्य सभा में भेजे गए हैं.

उत्तराखंड की सीटों का 33 प्रतिशत और बिहार का 31 प्रतिशत सीट बाहरी लोगों को गया है. बाहरी लोगों से अर्थ राज्य के स्थायी निवासी नहीं होने के बावजूद उन्हें राज्य सभा का उम्मीदवार बनाया गया है. बिहार से इस बार आरजेडी ने वकील राम जेठमलानी को और जनता दल (यू) ने शरद यादव को उम्मीदवार बनाया. धम्रेद्र प्रधान बिहार से भाजपा के राज्य सभा सदस्य हैं. जेठमलानी इससे पहले भाजपा के उम्मीदवार के तौर पर राजस्थान से सदस्य चुने गए थे. गुजरात से अरूण जेटली और स्मृति ईरानी बाहरी हैं.



कांग्रेस ने मनमोहन सिंह को असम से राज्य सभा का सदस्य बनाकर दस वर्षो तक प्रधानमंत्री बनाए रखा. उसके बाद कांग्रेस ने असम से उत्तर प्रदेश के संजय सिंह को भी राज्य सभा में भेज दिया. कांग्रेस ने तमिलनाडु के पी. चिदंबरम को महाराष्ट्र से उम्मीदवार बनाया है और महाराष्ट्र के सुरेश प्रभु को भाजपा पहले हरियाणा से राज्य सभा में भेजना चाहती थी लेकिन बाद में आंध्र प्रदेश से भेजने का फैसला कर लिया.

महाराष्ट्र की उन्नीस सीटों में से पंद्रह प्रतिशत सीटें बाहरी लोगों के लिए सुरक्षित हो गई है. उत्तर प्रदेश से कांग्रेस ने दिल्ली के वकील कपिल सिब्बल को राज्य सभा का उम्मीदवार बनाया और भाजपा पहले से ही रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को राज्य सभा में भेज चुकी है. उत्तर प्रदेश में राज्य स्तरीय दलों का प्रभाव है इसीलिए वहां बाहरी लोगों का कब्जा नहीं हुआ है. वहां की लगभग छह प्रतिशत सीटें ही बाहरी लोगों के शिकंजे में गई है.

राज्य सभा के लिए संविधान में यह प्रावधान उसके गणतांत्रिक चरित्र को सुरक्षित रखने के इरादे से किया गया था. लेकिन राष्ट्रवाद की आड़ में गणतंत्र की भावना को खत्म करने की तमाम योजनाओं में राज्य सभा का यह चरित्र भी बनाना है. इससे आर्थिक रूप से कमजोर राज्य, जाति समूह, धार्मिंक समूह, भाषा समूह के उम्मीदवारों पर लोकतंत्र की गहरी मार पड़ रही है. 
 

 

 

अनिल चमड़िया
लेखक


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