चौं रे चंपू : सेल्फ, सुल्फा और सेल्फी
चौंरे चंपू ! सिंहस्थ तू दो बार है आयौ, कछू तौ बता!
अशोक चक्रधर |
-क्या सुनना चाहते हैं? मालवी, ब्रजभाषा, हिंदी में आंखों देखा हाल अथवा अंग्रेज़ी की लाइव रनिंग कमेंट्री! आई कैन डू एनी थिंग फ़ॉर यू. आफ्टर द फ़ाइटिंग, साधूज़ आर आस्किंग हाउ डू यू डू?
-जियादा मत बनै, बोल! -शिप्रा नदी का पवित्र तट, नर्मदा का पवित्र जल. सुथरा-सुथरा रास्ता, निथरी-निथरी आस्था. स्नान और ध्यान, जटाएं और घटाएं, देह सटाएं, नेह पटाएं. सफाई भी और वाई-फ़ाई भी. मौका पाते ही जेब साफ़ कर देता है पारंगत.
कुंभ-यात्री माफ कर देता है परंपरागत. यात्री आत्मगढ़ति तर्क से तुष्ट है कि यह भी उसके किसी पाप का परिणाम रहा होगा और दुष्ट जेबकतरे का पुण्य कि कुंभ-स्नान के दौरान जो पाया, सहज आया होगा. बहरहाल, दोनों को प्रतिफल मिला. -अंतिम साही स्नान की बता!
-अद्भुत बात यह थी कि अति की प्रतिद्वंद्विता में अखाड़े आमने थे न सामने, लगे थे एकदूजे का हाथ थामने. सनातनी परम्परा वाले गेरु ए साधु और बिना-तनी, यानी, बिना कुछ पहनने वाली परंपरा के, भूरी-भूरी .खाक-धूल लगाए नागा साधु, एक साथ एक घाट पर नहाए.
दोनों ने वस्त्राभूषण और भभूताभूषण अपनी-अपनी तरह से पहने-लगाए. डमरू और झुमरू, जटाएं और लटाएं, त्रिशूल और कर्णफूल, रूद्राक्ष और सर्पाक्ष, कनफटे के कमंडल और कनिछद्री के कुंडल, जोगियों वाले कंगन, कान में उतने ही बड़े आकार के कुंडल. मूंछें एक तरफ उठीं तो दूसरी तरफ गिरीं, भवों का जिधर जाने का मन किया, उधर फिरीं.
-और बता! -नागा सुल्फ़ा खींचा करते थे, अब सैल्फ़ी खींच रहे थे. सनातनी, बिना-तनी, बिना तनातनी के सैल्फी ले रहे थे. घटनाएं, दुर्घटनाएं तो होती ही हैं. वामाचारी कदाचारियों के बीच सदाचारी सैल्फ़ की खोज में श्रद्धापूर्वक नहाते हैं.
नर्मदा का जल शिप्रा के तटों को उस आस्था से परिचित करा रहा है, जहां पानी कहीं का, बानी कहीं की, मेल-मिलन का कोई सानी नहीं. इतने सारे मनुष्य उज्जैन में बारह साल बाद एकत्रित हुए थे. बारह साल बाद चचा, आपको पुन: कमेंट्री सुनाऊंगा. तब तक के लिए नमस्कार.
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