सहिष्णुता का सामूहिक चीरहरण

Last Updated 29 Nov 2015 01:25:51 AM IST

पता नहीं सिनेमाई लोकप्रियता की सीढ़ियां चढ़ महान बने मेरे महान मुल्क के महानुभाव शांत, संयत और मौन रहने का महत्त्व क्यों नहीं समझ पाते.




सहिष्णुता का सामूहिक चीरहरण

अरे भाई, जब आपको मालूम है कि देश यकायक असहिष्णु हो उठा है तो आप बैठे-बिठाए आग में घी क्यों डाल देते हो? आमिर भाई, क्या जरूरत थी आपको अपनी पत्नी की चिंता को इस तरह सार्वजनिक करने की? आप तो उन कला विभूतियों में से हैं, जिन्हें पर्याप्त समझदार और सरोकारी माना जाता है. आपको इस देश का जो सम्मान-प्यार हासिल है, वह विरलों को ही नसीब हो पाता है. यह सम्मान-प्यार जाति-धर्म की सीमाओं से बहुत ऊपर उठा हुआ, व्यापक और पवित्र किस्म का है.

अगर आपको अहसास हुआ कि देश असहिष्णु हो गया है तो आप तमाम असहिष्णुओं के लिए एक अपील जारी कर सकते थे, उनको कह सकते थे कि सबका भला इसी में है कि देश के माहौल को बिगड़ने न दें, असहिष्णुता पैदा करने वाले तत्वों-कृत्यों को अपने बीच पनपने न दें भड़काऊ-तड़काऊ भाषण-वक्तव्यों पर अपने कान न टिकाएं, जहां भी रहें अच्छे पड़ोसियों की तरह हाथ मिलाकर रहें, गले में बांह डालकर रहें. अगर आप ऐसी अपील जारी करते तो शायद ज्यादा सकारात्मक प्रभाव होता और इस देश की ‘सहिष्णु चेतना’ में इतना उफान न आता. वैसे मैं जानता हूं कि आपकी मंशा बिल्कुल वह नहीं थी, जो आप पर थोप दी गई और यह भी जानता हूं कि न आपकी पत्नी को देश छोड़ना था, न आपको, और यह बात अब आप दुनिया को बता भी चुके हैं. यह भी जानता हूं कि अगर आपको जरा भी इल्म होता कि आपके बयान पर ऐसा बवाल मच जाएगा तो आप अपने ही प्रति असहिष्णु होकर वह नहीं बोलते जो आप बोल गए, लेकिन मेरे और मेरे जैसे चंद लोगों के ऐसा जानने-सोचने से होता क्या है?

अब आमिर की असहिष्णुता पर देश की ‘सहिष्णु चेतना’ फुंफार उठी है. भला सहिष्णु देश को असहिष्णु बताने की हिमाकत की तो की कैसे? सहिष्णुता के सारे रक्षक, सारे पैरोकार, सारे शूरवीर और सैनिक अपनी सहिष्णुता का लट्ठ लेकर आमिर के पीछे दौड़ पड़े हैं. कोई कह रहा है कि देश छोड़कर जाना है तो चले जाएं, आबादी कम होगी; कोई कह रहा है कि जिस सहिष्णु देश ने तुम्हें आमिर खान बनाया है, उसकी सहिष्णुता में असहिष्णुता देखते हुए तुम्हें शर्म नहीं आई. कोई पूछ रहा है कि उस सहिष्णु देश का नाम बता दीजिए, जहां आप जाना चाहेंगे, कोई कह रहा है कि हिंदू भावनाओं पर प्रहार करने वाली अपनी फिल्म ‘पीके’ से 500 करोड़ कमाई कर लेने वाले आमिर को इस देश की सहिष्णुता नजर नहीं आती, क्या वे इसी तरह से इस्लाम की आलोचना करने वाली कोई फिल्म पाकिस्तान, बांग्लादेश या किसी दूसरे मुल्क में बना सकते थे? कोई-कोई तो देशद्रोह का आरोप लेकर अदालत भी जा पहुंचा है. ‘सहिष्णुता’ की बाढ़ हर बांध-तटबंध को तोड़कर आमिर को जल समाधि देने की कोशिश कर रही है. अब किसमें हिम्मत कि कोई इस बाढ़ के आगे खड़ा हो सके या कोई इस बाढ़ के आगे इसकी ‘सहिष्णु’ सूरत दिखाने का आईना रख सके. इस ‘सहिष्णुता’ का प्रवाह इतना सहिष्णु है कि आमिर के घर की सुरक्षा कई गुना बढ़ानी पड़ गई.

यह तो थी केंद्र सरकार और उसके समर्थक सहिष्णुओं की बात. अब उन सहिष्णुओं की भी सुन लें जो एकाएक आमिर खान के पक्ष में खड़े हो गए हैं. ये सब वे हैं, जो भाजपा-संघ-हिंदूवादी संगठनों के राजनीतिक विरोधी हैं. इनमें से कोई कह रहा है कि आमिर का एक-एक शब्द सही है, कोई कह रहा है कि आमिर ने सरकार को आईना दिखाया है, कोई कह रहा है कि संघ-भाजपा को आमिर की निंदा करने के बजाय उनकी बात का जवाब देना चाहिए और कोई आमिर के बहाने मुस्लिम असुरक्षा का आलाम लेकर अपने राजनीतिक सुर साध रहा है. मतलब यह आमिर नाम की आग में हर कोई अपनी-अपनी रोटी सेंक रहा है.

असहिष्णुता पीड़ित इन गैर-भाजपाई सहिष्णुओं को देश का लंबा इतिहास सिर्फ सद्भाव, भाईचारे और सहिष्णुता का इतिहास लगता है. इनकी नजर में बंटवारे के समय भी देश सहिष्णु था. देश के विभिन्न हिस्सों में छोटे-छोटे अंतराल में होते रहे सांप्रदायिक दंगों के समय भी देश सहिष्णु था, पूंजीवादी अतियों के विरुद्ध पैदा हुए नक्सली उभारों के समय भी देश सहिष्णु था, व्यापक दलित उत्पीड़नों और हत्याकांड के समय भी देश सहिष्णु था, अलगाववादी मांगों के समय देश सहिष्णु था, सिख आतंकवाद के दौर में स्वर्ण मंदिर पर फौजी कार्रवाई, इंदिरा गांधी की हत्या और सिख संहार के समय भी देश सहिष्णु था, राजीव गांधी की हत्या के समय देश सहिष्णु था, गोधरा कांड और गुजरात दंगों के समय देश सहिष्णु था, बाबरी मस्जिद के गिरने और मुंबई धमाकों के समय देश सहिष्णु था, कश्मीरी पंडितों के कश्मीर से निर्वासन के समय देश सहिष्णु था, सलमान रुश्दी और तसलीमा नसरीन को लेकर भी देश सहिष्णु था, हर आतंकी हमले के समय देश सहिष्णु था, यहां तक कि मुजफ्फरनगर के दंगों तक देश सहिष्णु था. देश असहिष्णु हुआ तो दादरी में अखलाक की हत्या के बाद और तब जब देश के ऊंघते हुए कुछ पुरस्कार प्राप्त बुद्धिजीवियों को देववाणी हुई-अरे, तू इधर सो रहा है, देख, उधर देश असहिष्णु हो गया है. उठ, अपना पुरस्कार लौटा दे, इस असहिष्णुता के प्रति अपना विरोध जता दे.

देश की बढ़ती असहिष्णुता से पीड़ित इन महान गैर-भाजपाई केंद्र सरकार विरोधी सहिष्णुओं के पास बढ़ती असहिष्णुता की काट का न कोई कारगर उपाय है, न कोई सक्षम सूत्र है और न कोई सामाजिक सिद्धांत है. जो कुछ है भी वह क्षुद्र राजनीतिक स्वाथरे और आपसी नफरत से संचालित है. रही मीडिया की बात, तो मीडिया हर उस घटना को, हर उस व्यक्ति को और हर उस बयान को जो सहिष्णुता की धज्जियां उड़ा सकता हो, आपसी नफरत को बढ़ा सकता हो, सियासी जंग में जहर घोल सकता हो, सुर्खियां बनाकर परोस देता है. आमिर के प्रकरण में एआर रहमान ने कहा कि कुछ महीने पहले उन्होंने भी ऐसी ही स्थिति का सामना किया था.

उनका इशारा मुस्लिम असहिष्णुता की ओर था, लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि कुछ भी हिंसक नहीं होना चाहिए. हम बहुत ही सभ्य लोग हैं और हमें दुनिया को दिखाना चाहिए कि हमारी सभ्यता सर्वश्रेष्ठ सभ्यता है. अब मीडिया का तमाशा देखिए कि दिल्ली का एक प्रसिद्ध समाचार चैनल एआर रहमान के वक्तव्य के पहले हिस्से को तो दिखाता रहा जिसका अर्थ निकलता था कि आमिर और रहमान एक पाले में खड़े हैं, लेकिन दूसरे हिस्से को पी गया जिसमें वास्तविक सहिष्णुता का संदेश फूट रहा था. जिस देश में इतने बेहया नेता और दल हों, और जहां इतना गैर जिम्मेदार मीडिया हो वहां सहिष्णुता अपना चीर बचाए तो बचाए कैसे?

विभांशु दिव्याल
लेखक


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