डिजिटल इंडिया की राह के रोड़े

Last Updated 04 Jul 2015 01:49:27 AM IST

मोबाइल फोन की वजह से भारत में कितना बड़ा बदलाव आया, हमने इसे अपनी आंखों से देखा है.




डिजिटल इंडिया की राह के रोड़े

सॉफ्टवेयर के मामले में भारत दुनिया का नंबर एक देश कब और कैसे बन गया, इसके बारे में आपने कभी सोचा? पिछले तीन-साढ़े तीन दशक में भारी बदलाव आया है. सन् 1986 में सेंटर फॉर रेलवे सिस्टम (सीआरआईएस-क्रिस) की स्थापना हुई, जिसने यात्रियों के सीट रिजर्वेशन की पण्राली का विकास किया. हालांकि इस सिस्टम को लेकर अब भी शिकायतें हैं, पर इसमें दो राय नहीं कि तीन दशक पहले की और आज की रेल यात्रा में बुनियादी बदलाव आ चुका है. पूरे देश में यात्रियों का आवागमन कई गुना बढ़ा है. ऐसी क्रांति दुनिया में कहीं नहीं हुई. पिछले साल दीवाली के मौके पर अचानक ई-रिटेल के कारोबार ने दस्तक दी. इसके कारण केवल सेवा का विस्तार ही नहीं हुआ है, नए किस्म के रोजगार भी तैयार हुए हैं.

बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘डिजिटल इंडिया’ कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए कहा कि यह तकनीक सरकारी कामकाज में पारदर्शिता लेकर आएगी. उन्होंने इसके लिए कोल ब्लॉक्स की नीलामी का उदाहरण दिया. नीलामियों और सरकारी सौदों में आज भी गोपनीयता की काली चादर पड़ी है. डिजिटल तकनीक इसे काफी सीमा तक पारदर्शी बनाने में मददगार साबित हो रही है. संपत्तियों का पंजीकरण डिजिटाइज होने से कार्य-कुशलता बढ़ी है. पासपोर्ट बनाने में तमाम धांधलियां हैं, पर आप कम से कम अपने काम की प्रगति कंप्यूटर पर देख सकते हैं. कई तरह के बिल आप ऑनलाइन जमा कर सकते हैं. कई तरह के फॉर्म हासिल कर सकते हैं और तमाम तरह की अर्जियां जमा कर सकते हैं. पारदर्शिता के साथ-साथ तकनीक ने आपका समय भी बचाया है. 

डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के तहत तीन दिशाओं में काम होगा. पहला, जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करना. दूसरा, विभिन्न सेवाओं को डिजिटल आधार पर उपलब्ध कराना और तीसरा कंप्यूटर लिटरेसी बढ़ाना. अब तक साक्षरता को जरूरी माना जाता था. अब कंप्यूटर साक्षरता जरूरी होने वाली है. देश के उद्योगपति इस परियोजना के लिए तकरीबन साढ़े चार लाख करोड़ रुपए लगाने जा रहे हैं.

सरकार ने ढाई लाख गांवों को ब्रॉडबैंड से जोड़ने की योजना बनाई है. सभी स्कूलों को ब्रॉडबैंड से जोड़ने का विचार है. इसके लिए शुरू में ढाई लाख स्कूलों में फ्री वाई-फाई होगा. स्कूलों में तकनीक के इस्तेमाल से बस्ते का बोझ कम होगा. स्कॉलरशिप का फॉर्म इंटरनेट पर होगा. अस्पतालों में लाइन नहीं लगानी पड़ेगी. डॉक्टर का समय इंटरनेट पर मिल जाएगा. जांच रिपोर्ट भी इंटरनेट पर मिलेगी. दवाएं भी आप इंटरनेट से मंगवा सकेंगे. सरकार के अनुसार देश के हर शहर और गांव तक ये सुविधाएं तीन साल में पहुंच जाएंगी. किसान को बारिश से लेकर बीज तक की जानकारी इंटरनेट पर मिलेगी. मंडियां इंटरनेट से जुड़ी होंगी, अपने माल का बाजार भाव इंटरनेट पर ही मिलेगा. मुआवजा और कर्ज सुविधाएं मोबाइल फोन पर उपलब्ध होंगी. दस्तावेजों को ई-लॉकर में रखने पर वे सुरक्षित रहेंगे और साथ ही उन्हें कहीं भेजना हो तो वे सीधे नेट के मार्फत भेजे जा सकेंगे.

मोबाइल पर पुलिस, मोबाइल पर बैंक, मोबाइल पर टेंडर, मोबाइल पर ही कोर्ट-कचहरी जैसी हर सुविधा देने का दावा किया गया है. यह कोई काल्पनिक दावा नहीं है. दुनिया के विकसित देशों में ये सुविधाएं उपलब्ध हैं. हमारे देश की परिस्थितियों को देखते हुए इस सिलसिले में कुछ सवाल उठते हैं. क्या हमारे पास इसके लिए जरूरी आधार ढांचा मौजूद है? हमारे यहां ब्रॉडबैंड की स्थिति अभी बहुत अच्छी नहीं है. दुनिया के सौ से ज्यादा देशों में स्थिति हमसे बेहतर है. भारतीय भाषाओं में नेट सर्फिंग तेजी से बढ़ी है, पर वह वैिक प्रवृत्तियों से काफी पीछे है.

सरकार ने इस अभियान के तहत जिन कुछ लक्ष्यों को हासिल करने का इरादा जाहिर किया है उन्हें देखें. पहला लक्ष्य है ब्रॉडबैंड हाइवे. देश के आखिरी घर को ब्रॉडबैंड से जोड़ने की कोशिश. इसका पेच यह है कि नेशनल ऑप्टिक फाइबर नेटवर्क प्रोग्राम लक्ष्य से तीन-चार साल पीछे चल रहा है. दूसरा लक्ष्य है, सबके पास फोन की उपलब्धता. इसके लिए जरूरी है कि लोगों के पास फोन खरीदने की क्षमता हो. इसके समानांतर सस्ते फोन तैयार करने की जरूरत है. महंगे फोन की विदेशी तकनीक के मुकाबले स्वदेशी तकनीक तैयार करनी होगी. इंटरनेट एक्सेस करने की सार्वजनिक व्यवस्था होनी चाहिए. शहरों में पीसीओ की तर्ज पर साइबर कैफे चलने लगे हैं. उनके नियमन और संचालन की व्यवस्था होनी चाहिए. गांवों में पंचायत के स्तर पर इन्हें बनाना और चलाना आसान नहीं होगा. इससे बड़ी चुनौती है ई-गवर्नेंस. सरकारी दफ्तरों को डिजिटल बनाना और सेवाओं को इंटरनेट से जोड़ने का काम भारी है. अनुभव बताता है कि दफ्तर डिजिटल होने के बाद भी उनमें काम करने वाले उसके अभ्यस्त नहीं होते. अलबत्ता दो दशक पहले देश के बैंकों के सामने यही समस्या आई थी, पर समय के साथ उस पर काबू पा लिया गया.

भारत में सभी लोगों की स्थिति एक जैसी नहीं है. साठ करोड़ से ज्यादा लोग नेट कनेक्शन के बारे में जानते भी नहीं. शायद अगले कई साल तक वे कंप्यूटर के इस्तेमाल की स्थिति में ही नहीं होंगे. देशभर में आधार कार्ड की कल्पना अभी वास्तविक नहीं लगती. हम जिस समावेशी विकास की कल्पना करते हैं, वह तब तक संभव नहीं जब तक सबकी पहुंच में तकनीक न हो. ऐसे में जो लोग तकनीक का फायदा उठाने की स्थिति में नहीं होंगे, वे पीछे रह जाएंगे. यह स्कूली शिक्षा की तरह है. अभी स्कूली शिक्षा के दायरे में ही पूरा देश नहीं है. ऐसे में टेक-लिटरेसी की आशा कैसे की जा सकती है?

देश में ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क स्थापित करने की जिम्मेदारी भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क लिमिटेड की है. राष्ट्रीय ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क योजना सन 2011 में बनी थी, पर उसकी गति सुस्त थी. इस दिशा में तकरीबन 40 फीसद काम ही हो पाया है. सरकार ने पर्याप्त निवेश नहीं किया. अब सरकार डिजिटल इंडिया कार्यक्रम में एक लाख करोड़ रु पए लगाने की बात कह रही है. मोदी सरकार के सामने ‘मेक इन इंडिया’ की तरह ‘डिजिटल इंडिया’ कार्यक्रम को सफल बनाने की चुनौती है. कई मायनों में दोनों कार्यक्रम एक-दूसरे के पूरक हैं. पिछले साल जून में नई सरकार की ओर से राष्ट्रपति के अभिभाषण में बुनियादी तौर पर बदलते भारत का नक्शा था. नरेंद्र मोदी के आलोचकों ने तब भी कहा था और आज भी कह रहे हैं कि यह एक राजनेता का सपना है. इसमें विशाल परिकल्पना है. उसे पूरा करने की तजबीज नहीं.

ज्ञानजीवी समाज के बच्चों को तैयार करने हेतु प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल और नागरिक सेवाओं के लिए ई-प्रशासन योजना देश का रूपांतरण कर सकती है. इसी तरह इनफॉर्मेशन फॉर ऑल यानी सभी को जानकारियां मुहैया कराने का कार्यक्रम हमारे लोकतंत्र की कहानी बदल सकता है. पर ये लक्ष्य तभी पूरे होंगे, जब उसके लिए जरूरी ताना-बाना हमारे पास होगा. पूंजी निवेश एक समस्या है, पर पूंजी हाथ में हो तब भी सांस्कृतिक और सामाजिक तौर पर हमें उसके लिए प्रशिक्षित होना होगा. यह बदलाव की बुनियादी शर्त है. हम इस रूपांतरण की अवधि कम कर सकते हैं, जिसके लिए राष्ट्रीय इच्छाशक्ति चाहिए. क्या हम तैयार हैं?

 

प्रमोद जोशी
लेखक


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment