अपनों का शिकार बनते बच्चे

Last Updated 18 Apr 2015 01:09:45 AM IST

बच्चों के जीवन पर कटु आघात करने वाले ये हादसे अपने ही परिवेश में मासूमों के लिए मौजूद असुरक्षा और असंवेदनशीलता को सामने लाते हैं.


अपनों का शिकार बनते बच्चे

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले में एक बेहद ही शर्मनाक घटना ने हर संवेदनशील इंसान को यह सोचने पर विवश कर दिया कि देहरी के भीतर यह हाल है तो सड़क पर बच्चे-बच्चियों की सुरक्षा की क्या आशा की जा सकती है. यहां 16 साल की एक लड़की ने खुलासा किया कि उसके साथ पिता, चाचा और भाई ने उसके साथ लंबे वक्त तक दुराचार किया. यह इस तरह की अकेली घटना नहीं है. आये दिन ऐसे मामले सामने आते रहते हैं. परिजनों और परिचितों द्वारा बच्चों का यौन शोषण करने की खबरें हमारे समाज के बदरंग और कुत्सित हो चुके चेहरे को दिखाने के लिए काफी हैं.

बच्चों के जीवन पर कटु आघात करने वाले ये हादसे अपने ही परिवेश में मासूमों के लिए मौजूद असुरक्षा और असंवेदनशीलता को सामने लाते हैं. बाल यौन शोषण को लेकर पहली बार भारत में हुए एक सर्वे के मुताबिक 50 फीसद मामलों में बच्चों का शोषण वहां होता है जहां उत्पीड़न करने वाले का उनसे विश्वास और जिम्मेदारी का रिश्ता होता है. इसके चलते अधिकतर बच्चे किसी से इस बात की शिकायत भी नहीं करते. घृणित और पशुवत मानसिकता लिए ऐसे परिचितों की ऐसे कुकृत्य को अंजाम की हिम्मत भी इसीलिए होती है क्योंकि वे जानते हैं कि मासूम बच्चे उनकी शिकायत तक नहीं करेंगे. बेहद अफसोसजनक है कि जिन्हें बच्चों को जीवन का पाठ पढ़ाकर उन्हें संबल देना चाहिए, वे ही उनका बचपन और मासूमियत छीन रहे हैं.

बीते कुछ बरसों में बच्चों का यौन शोषण बढ़ा है. स्कूलों के परिसर के भीतर होने वाले शोषण और गली-मोहल्ले में होने वाले हादसों के साथ घर के भीतर बच्चों को अपनों द्वारा ही यौन शोषण का शिकार बनाया जा रहा है. विकृत मानसिकता को परिलक्षित करने वाली ये घटनाएं देश के कोने-कोने में हो रही हैं और सुर्खियां भी बन रही हैं. इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि आज हमारे देश में बच्चों की आबादी का बड़ा हिस्सा यौन शोषण का शिकार है. मासूम बच्चियों के साथ होने वाले यौन र्दुव्‍यवहार की अमानवीय घटनाओं के बढ़ते आंकड़े हमारी पूरी सामजिक, पारिवारिक और प्रशासनिक व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगाते हैं.

सच तो यह है कि आज के तथाकथित प्रगतिशील समाज में विस्तार पाती संस्कारहीन सोच और अश्लीलता इन मासूमों के शोषण के लिए जिम्मेदार है. कुछ साल पहले भारत सरकार के समाज एवं बाल कल्याण मंत्रालय के आंकड़ों में सामने आया कि बच्चों का एक बड़ा प्रतिशत यौन शोषण का शिकार है और ऐसी घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं. सबसे बड़ा अफसोस तो यह है कि मासूम बच्चों के लिए परिचित ही पिशाच बन जाते हैं. अधिकतर घटनाओं में ऐसे कुत्सित मामलों को अंजाम देने वाले आमतौर पर बच्चों के करीबी लोग ही होते हैं. इसी जान-पहचान का फायदा उठकर वे बच्चों का यौन उत्पीड़न करते हैं.

ह्यूमन राइट्स वाच की रिपोर्ट ‘ब्रेकिंग द साइलेंस- चाइल्ड सेक्सुअल अब्यूज इन इंडिया’ के अनुसार हमारे यहां घरों से लेकर स्कूलों तक बच्चों के साथ होने वाली यौनाचार की घटनाएं आम बात हैं. इतना ही नहीं, इस रिपोर्ट  के मुताबिक भारत में न तो बच्चों को ऐसे कुकृत्यों से बचाने के लिए सरकार की मौजूदा नीतियां काफी हैं और न ही पीड़ितों की देखभाल और चिकित्सा का सही प्रबंध. जबकि आज के परिवेश में इस समस्या को व्यापक स्तर पर समझा जाना जरूरी है.

आज के समय में प्रभावी कानून और जागरूक परिवेश देश की भावी पीढ़ी की सुरक्षा के लिए सबसे जरूरी हैं. आंकड़ों की बात करें तो भारत में हर दूसरा बच्चा यौन उत्पीड़न का शिकार बनता है. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में 53.22 फीसद बच्चे यौन शोषण का शिकार हैं. इस अत्याचार को झेलने वाले बच्चों में केवल लड़कियां ही नहीं, लड़के भी शामिल हैं. इनमें 5 से 12 साल की उम्र के बीच यौन शोषण का शिकार बनने वाले बच्चों की संख्या सर्वाधिक है. तकनीक की बढ़ती पहुंच ने इस समस्या को और विकराल बना दिया है.

चाइल्ड पोर्नोग्राफी और इंटरनेट के जरिये भी अब बच्चों के यौन शोषण की खबरें सामने आ रही हैं. कुछ समय पहले एंटीवायरस बनाने वाली एक कंपनी की ओर से कराए गए सर्वेक्षण में अभिभावकों से कहा गया है कि अगर उनका बच्चा इंटरनेट पर ज्यादा समय गुजारता है तो उनको सावधान रहना चाहिए. कोलकाता, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद और अहमदाबाद में 8 से 12 साल की उम्र के बच्चों के बीच किए गए इस सर्वेक्षण के आधार पर जारी ‘मैकऐफीज ट्वीन एंड टेक्नोलॉजी रिपोर्ट 2013’ में कहा गया है कि इंटरनेट पर छोटे बच्चों को कई कुत्सित मानसिकता वाले लोग शिकार बनाने की ताक में रहते हैं. इंटरनेट पर दोस्ती बढ़ाने के बाद ऐसे लोग बच्चों का यौन शोषण करते हैं.

मन को विचलित कर जाने वाली ऐसी यौन-आक्रमण की घटनाएं बच्चों से उनका बचपन ही नहीं, जीवन भी छीन लेती हैं. बच्चों के साथ होने वाली ऐसी हैवानियत उनके पूरे व्यक्तित्व को खंडित कर देती है. भावी जीवन में उनके विचार और व्यवहार दोनों ही इस दुर्भाग्यपूर्ण वाकये से प्रभावित होते हैं. मनोवैज्ञानिक रूप से तो मासूम मन ऐसे  हादसे झेलने के बाद खुद को जीवन भर नहीं उबार पाते. यह बात देश के कानून ,समाज और सरकार के लिए विचारणीय होनी चाहिए.

इन घटनाओं के बढ़ते आंकड़े साफ जाहिर करते हैं कि न केवल इन्हें संजीदगी से लिया जाना जरूरी है, बल्कि दोषियों के खिलाफ सख्त और त्वरित कार्रवाई की जानी भी आवश्यक है. जो अपराध अनजाने और पराए लोगों द्वारा किए जाते हैं उनसे बचा जा सकता है, पर यौन शोषण के जो अपराध पिता, भाई, संबंधियों द्वारा अंजाम दिए जाते हैं उनसे बच्चे खुद को बचाएं भी तो कैसे? यह एक ऐसा दंश है जिसके बारे में खुलकर बोलना भी मना है. हमारे समाज में घरेलू यौन शोषण का खुलेआम पता ही नहीं चलता, लिहाजा अधिकतर मामलों में दोषियों को दंड नहीं  मिल पाता. ये हालात वाकई भयावह हैं. हमें समझना होगा कि स्थिति निश्चित ही आंकड़ों से कहीं अधिक गंभीर और गहरी है. हमारे यहां यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम (पोक्सो) 14 नवम्बर, 2012 को लागू हुआ है.  इसे बेहद कड़ाई से लागू किया जाना आवश्यक है.

पाशविकता का यह खेल हमारी संपूर्ण सामाजिक व्यवस्था और मानवीय मूल्यों को शर्मिदा करने वाला तो है ही, बच्चों की सुरक्षा और उनके भविष्य से जुड़ी अनगिनत  चिंताओं को जन्म देने वाला भी है. आज जिस तेजी से बच्चों के कामुक शोषण के आंकड़े बढ़ रहे है, जरूरत यह समझने और स्वीकार करने की है कि बच्चों की सुरक्षा समाज की साझी जिम्मेदारी है और इस जिम्मेदारी को हम सबको मिलकर उठाना होगा.

मोनिका शर्मा
लेखिका


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