विवाह में बलात्कार कहां से आता है

Last Updated 21 Sep 2014 01:04:48 AM IST

बलात्कार कहीं भी हो सकता है, पर विवाह में नहीं. कानून की यह बहुत पुरानी मान्यता है और अब भी हमारी न्याय व्यवस्था से बहिष्कृत नहीं हुई है.




विवाह में बलात्कार कहां से आता है

इस जघन्य कानून में इस मान्यता की गूंज सुनाई पड़ती है कि पति राजा है और पत्नी प्रजा. अंग्रेजों ने हमारे यहां एक दिलचस्प मुहावरे को जन्म दिया था- हेड ऑफ द फैमिली यानी परिवार का मुखिया. पहले यह घर का बुजुर्गतम सदस्य हुआ करता था. जब से एकल परिवार शुरू हुआ, पति लोग ही हेड ऑफ द फैमिली बनाए जाने लगे. इससे उनकी कानूनी हैसियत और बढ़ी. पत्नियां समझने लगीं कि परिवार में उनकी अपनी हैसियत क्या है. वैसे, यह कोई नई बात नहीं थी. यह सदियों की कहानी है. पुरु षों के लिए स्त्रियां नींद की गोली की तरह काम करती रही हैं. पुरुषों को तृप्त कर अच्छी नींद का इंतजाम करना स्त्रियों की जिम्मेदारी है, लेकिन स्त्रियों को कौन सुलाएगा? इस प्रश्न को गैरजरूरी और वाहियात मान कर छोड़ दिया गया. साधन भला साध्य हो सकता है?
भारत में कई दशकों से विवाह और सेक्स के संबंध को मानवीय बनाने का संघर्ष जारी है. समय-समय पर कानून ने भी इसमें मदद की है.

इस दिशा में उड़ीसा हाईकोर्ट के एक पुराने फैसले को लैंडमार्क कहा जा सकता है. पत्नी अभिनेत्री थी और पति के व्यवहार से दुखी होकर अलग रहने लगी थी. कानून में एक धारा है- वैवाहिक अधिकारों को बहाल करना. जाहिर है, इन अधिकारों में सेक्स का अधिकार सबसे ऊपर है. सो पति ने अदालत की शरण ली और प्रार्थना की कि मेरे वैवाहिक अधिकारों को बहाल किया जाए. काफी बहस-मुबाहसे के बाद हाईकोर्ट ने यह उदार फैसला दिया कि किसी भी स्त्री को बाध्य नहीं किया जा सकता कि वह अपने पति के साथ रहे. फरियादी की मंशा पूरी नहीं हो सकी. लेकिन कानून की यह धारा आज भी अपनी जगह पर कायम है.

उड़ीसा हाईकोर्ट के फैसले में जज ने यह लिखा था या नहीं, पर उसमें यह भाव जरूर अंतर्निहित था कि अपनी पत्नी से वैवाहिक संबंध कायम करना हो तो उसके पास जाइए, उसे मनाइए और वह मान जाती है तो उसके साथ घर लौटिए. अपने वैवाहिक अधिकारों का उपयोग करना है, तो पहले अपने वैवाहिक कर्तव्यों का पालन कीजिए. विवाह कानूनी संबंध के अलावा एक भावनात्मक रिश्ता भी है. भावनात्मक संबंध को छिन्न-भिन्न कर देने के बाद आप पत्नी को कानून की छड़ी से पीटना चाहेंगे, तो वह आपको ठेंगा दिखा सकती है.

लेकिन अदालतों का भी अपना मूड होता है. कुछ महीने पहले एक अभियुक्त को इसलिए रिहा कर दिया गया कि जिस स्त्री के साथ उसने बलात्कार किया था वह उसकी पत्नी है. जब यह साबित हो गया कि जो किया गया था, वह सेक्स नहीं, बलात्कार था, तब दिल्ली की इस अदालत को इतना निर्मम फैसला नहीं देना चाहिए था. फैसले के समर्थन में अदालत का कहना था कि वह कानून की धाराओं से बंधी होती है. जरूर, लेकिन कानून की जो धाराएं प्राकृतिक न्याय और मानव गरिमा के विरु द्ध हैं, उन्हें गैरकानूनी करार देना भी अदालत का ही काम है. समलैंगिकता को भारतीय दंड विधान में अपराध बताया गया है, पर उच्चतम न्यायालय ने उसे वैध करार दिया था.

दुनिया के कई देशों ने ‘विवाह में बलात्कार नहीं हो सकता’, इस धारणा को त्याग दिया है. लेकिन इस बलात्कार के लिए कोई सजा मुकर्रर नहीं की है. हां, इसके आधार पर स्त्री तलाक जरूर मांग सकती है. लेकिन हमारी संसद इसके लिए तैयार दिखाई नहीं देती. क्या इसके पीछे कोई ठोस कारण है? हम सभी को पता है कि जिद से ज्यादा कोई ठोस कारण नहीं होता. यह सरकार का हठ है कि हम विवाह के मामले में परंपरागत हदों से बाहर न निकलें. शायद सरकार सोचती है कि इस तरह वह विवाह संस्था को बचा रही है. सच यह है कि वह इसकी क्रूरताओं को बनाए रख कर विवाह संस्था को नष्ट कर रही है.

कानून में व्यभिचार की सजा है. एक विवाह के रहते दूसरा विवाह करने पर सजा है. विवाह के भीतर स्त्री के साथ मार-पीट की जाती है तो इसके लिए भी सजा है. दहेज मांगने की सजा है. लेकिन स्त्री के साथ जबरन सेक्स के लिए कोई सजा नहीं है. पति पत्नी को पीट नहीं सकता- घरेलू हिंसा कानून के तहत उसे पकड़ लिया जाएगा. परंतु अपनी पत्नी को पकड़ कर, दबोच कर, उसके हाथ-पांव बांध कर, उसे बेहोश कर, धमका कर, डरा कर उसके साथ सेक्स करना पति की अधिकार सीमा के भीतर आता है. है न यह आश्चर्य की बात.

चलिए मान लिया कि सेक्स के लिए पति अपनी पत्नी के पास नहीं जाएगा, तो कहां जाएगा. विवाह में स्त्री की इच्छा के विरु द्ध सेक्स की वैधता को भी मान लिया. लेकिन जबरदस्ती करने के लिए पति पत्नी को पीटता है, उसके हाथ-पांव बांध देता है, उसे बेहोश कर देता है, धमकाता है, डराता है, कमरे में बंद कर देता है, तो ये सभी क्रियाएं भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत क्या दंडनीय नहीं हैं? किसी और स्त्री के साथ ऐसा करके देखिए, पुलिस आप को दबोच लेगी. यौन संदर्भ के बिना अपनी पत्नी के साथ यह सब करके देखिए, आप को थाने में बुला लिया जाएगा. तो क्या सेक्स का लेप कर देने पर यह सारी जबरदस्ती वैध हो जाती है?

प्रेम के बहुत-से नियम विवाह पर भी लागू होते हैं. प्रेमी-प्रेमिका में भी यौन संबंध होता है. यह उनके संबंध की मिठास को बढ़ाता है. वैवाहिक जीवन में भी मिठास बढ़ सकती है. पर बल प्रयोग से मिठास नहीं, तिक्तता बढ़ेगी. संबंध में जहर घुल जाएगा. क्या पुरु षों का वैवाहिक आदर्श यही है?

राजकिशोर
लेखक


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