अनुवाद व तकनीक की सार्थकता

Last Updated 14 Sep 2010 12:34:00 AM IST

स्वातंत्र्योत्तर भारत में स्वाधीनता और स्वावलम्बन के साथ-साथ स्वभाषा को भी आवश्यक माना गया।


स्वतंत्रता के तुरंत बाद गांधीजी ने खुले शब्दों में कहा कि 'प्रांतीय भाषा या भाषाओं के बदले नहीं बल्कि एक प्रांत से दूसरे का संबंध जोड़ने के लिए एक सर्वमान्य भाषा की आवश्यकता है। ऐसी भाषा एकमात्र हिंदी या हिंदुस्तानी ही हो सकती है।' राजभाषा के संबंध में संविधान सभा के सदस्यों ने काफी चिंतन-मनन किया। तदनुसार 14 सितम्बर 1949 को देवनागरी में लिखित हिंदी संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकृत हुई। सरकारी कामकाज में हिंदी का प्रयोग हमारा संवैधानिक दायित्व है। इसकी पूर्ति हमारी निष्ठा पर निर्भर करती है। हम सरकारी कार्यों से संबंधित लक्ष्यों को जिस तरह हासिल कर रहे हैं, उसी तरह हिंदी के प्रयोग संबंधी लक्ष्यों को हासिल करने के लिए भी हमें प्रयासरत रहना चाहिए ।

राजभाषा स्वीकारने का मुख्य उद्देश्य है कि जनता का काम जनता की भाषा में संपन्न हो। प्रशासनिक भाषा में साहित्यिक या क्लिष्ट भाषा शैली का कोई स्थान नहीं होता। अति सरल हिंदी का प्रयोग करते हुए हम राजभाषा के प्रयोग को बढ़ावा दे सकते हैं। हिंदी ध्वन्यात्मक भाषा है। अंग्रेजी में उच्चारण के लिए भी शब्दकोश की आवश्यकता पड़ती है जबकि हिंदी में सिर्फ अर्थ देखने के लिए ही इसकी जरूरत पड़ती है। हिंदी में किसी भी भाषा को लिखना या उसका उच्चारण करना अधिक सरल होता है।

सरकारी काम-काज में हिंदी के प्रगामी प्रयोग के क्षेत्र में प्रगति हुई है, किंतु अब भी अपेक्षित लक्ष्य प्राप्त नहीं किए जा सके हैं। सरकारी कार्यालयों में अभी भी बहुत सा काम अंग्रेजी में ही हो रहा है। राजभाषा विभाग का लक्ष्य है सरकारी कामकाज में मूल टिप्पणी और प्रारूपण के लिए हिंदी का ही प्रयोग हो। यही संविधान की मूल भावना के अनुरूप होगा लेकिन आज भी सरकारी कार्यालयों में राजभाषा हिंदी का कार्य अनुवाद के सहारे चल रहा है। प्राय: अनुवाद भाषा को कठिन बनाता है। इसका कारण दोनों भाषाओं पर अच्छी पकड़ की कमी या अनुवादक को हर विषय की गहन जानकारी नहीं होना है। 

चिकित्सा, अर्थशास्त्र, अभियांत्रिकी, पारिस्थितिकी आदि विभिन्न विषयों में होने वाले विकास व अनुसंधान के फलस्वरूप रोज नई संकल्पनाएं जन्म ले रही हैं। नए शब्द गढ़े जा रहे हैं। चूंकि इन विषयों में रोज नए अनुसंधान विश्व के कोने-कोने में विभिन्न भाषाओं में हो रहे हैं अत: इनका साहित्य और उपलब्ध जानकारी मूल रूप से हिंदी में मौजूद नहीं है। इसके फलस्वरूप बदलते वैश्विक परिदृश्य में अनुवादकों की भूमिका काफी बढ़ गई है। इन नए विषयों का अनुवाद करते समय अनुवादकों के लिए मात्र 'स्रोत भाषा' व 'लक्ष्य भाषा' पर ही पकड़ काफी नहीं है अपितु उनके लिए विषय का पूरा ज्ञान भी जरूरी है परन्तु, यह संभव नहीं है कि एक अनुवादक विज्ञान, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र आदि सभी विषयों में पारंगत हो। नि:स्संदेह यह पूर्णत: अनुवादक की प्रतिभा पर निर्भर करता है कि वह जिस भाषा से और जिस भाषा में अनुवाद कर रहा है उन पर उसका कितना अधिकार है और इन भाषाओं की अनुभूतियों में वह कितनी तारतम्यता कायम रख सकता है। विषय समझने के लिए अनुवादक को उस विषय से संबंधित विशेषज्ञ की सहायता लेनी चाहिए क्योंकि विषय ज्ञान के बिना अनुवाद में प्राण नहीं फूंके जा सकते हैं। आदर्श स्थिति तो यह होगी कि अनुवाद ऐसे विशेषज्ञ से कराया जाए जिसे 'स्रोत भाषा' व 'लक्ष्य भाषा' का पूरा ज्ञान हो। ऐसे तकनीकी साहित्य का अनुवाद करने के लिए उन्हें अच्छा प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। इससे विषय की मौलिकता बनी रहेगी।

कार्यालयी भाषा की दृष्टि से एक सफल अनुवादक वही है जो अनूदित पाठ को सरल व स्पष्ट बनाए रखे। उसे किसी विषय को स्पष्ट करने के लिए अतिरिक्त वाक्य जोड़ने से परहेज नहीं करना चाहिए। कभी-कभी अंग्रेजी के एक शब्द को स्पष्ट करने के लिए पूरा वाक्य भी देना पड़ सकता है। इसे भाषिक संप्रेषण क्षमता की कमी नहीं समझना चाहिए। दूसरी ओर यह भी हो सकता है कि अंग्रेजी भाषा के पूरे वाक्य के लिए हिंदी भाषा का एक शब्द ही पर्याप्त हो। भाषा का स्वरूप निर्धारित करते समय ध्यान रखना बहुत आवश्यक है कि पत्र या प्रारूप किसे संबोधित है। छोटे-छोटे वाक्य लिखना सुविधाजनक होता है।

सूचना प्राद्योगिकी के बदलते परिवेश में हिंदी भाषा ने अपना स्थान धीरे-धीरे प्राप्त कर लिया है। अब उसकी उपादेयता पर कोई प्रश्नचिह्न नहीं लग सकता। सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने हिंदी के लिए विभिन्न प्रकार के सॉफ्टवेयर विकसित किए हैं। 'मंत्र-राजभाषा' एक मशीन साधित अनुवाद टूल है जो विशिष्ट विषय क्षेत्र के अंग्रेजी पाठ का हिंदी में अनुवाद करता है। 'मंत्र-राजभाषा' के संबंध में भ्रांति है कि यह सॉफ्टवेयर अनुवादकों का पूरक है परंतु यह उनकी सहायता के लिए बना है। अनुवादक उसकी मदद अनुवाद का पुनरीक्षण कर कार्य आसानी एवं शीघ्रता से कर सकता है। सी-डैक, पुणे के इंजीनियर राजभाषा विभाग के साथ मिलकर इस सॉफ्टवेयर को और बेहतर एवं स्वीकार्य बनाने के लिए प्रयासरत हैं। इन्टरनेट के क्षेत्र में हिंदी किसी भी मायने में अंग्रेजी से पीछे नहीं है। कंप्यूटर पर हिंदी में काम करते समय अक्सर लोगों को फौंट की इनकम्पैटिबिलिटि के कारण दस्तावेजों के स्थानांतरण व विनिमय की समस्या का सामना करना पड़ता है।
 
यह समस्या मानक भाषा एनकोडिंग को प्रयोग न करने से पैदा होती है। यूनिकोड इनकोडिंग को सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा मानक के रूप में मान्यता दे दी गई है। जैसे किसी अंग्रेजी फौंट में कंप्यूटर पर तैयार या उपलब्ध फाइल को दूसरे कंप्यूटर पर अंग्रेजी फौंट में देखा जा सकता है उसी प्रकार अब यूनिकोड इनकोडिंग के जरिए विंडो-2000 एवं उसके बाद वाले विंडोंज ओ.एस. में सहजता से हिंदी में कार्य कर सकते हैं। यूनिकोड समर्थित फौंट्स में बनी फाइल किसी भी यूनिकोड समर्थित कंप्यूटर पर देखी व संशोधित की जा सकती है। इस कंपैटिबिलिटी के लिए जरूरी केवल यह है कि हम कोई भी वह फौंट प्रयोग करें जो यूनिकोड समर्थित हो और जो भी सॉफ्टवेयर प्रयोग करें वह यूनिकोड को सपोर्ट करता हो। सूचना प्रौद्योगिकी विभाग व राजभाषा विभाग द्वारा कंप्यूटर पर हिंदी प्रयोग को सरलता, कुशलता व प्रभावी ढंग से करने के लिए पर्याप्त संसाधन व समाधान उपलब्ध कराये जा चुके हैं। ये सॉफ्टवेयर सूचना प्रौद्योगिकी विभाग व राजभाषा विभाग की वेबसाइट से निशुल्क डाउनलोड किए जा सकते हैं। निस्संदेह, हिंदी ही ऐसी भाषा है, जो पूरे देश को एक सूत्र में बांध सकती है और हिंदी में काम करना राष्ट्र सेवा का ही एक रूप है।

(लेखक गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग में संयुक्त सचिव हैं)



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