गोधरा पर फैसला

Last Updated 11 Oct 2017 03:58:14 AM IST

गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा गोधरा कांड पर दिए गए फैसले का अर्थ इतना ही है कि विशेष एसआईटी न्यायालय द्वारा जिन 31 लोगों को दोषी माना गया वे वाकई दोषी थे.


गोधरा पर फैसला

हां, 11 फांसी की सजा पाए अभियुक्तों को उम्र कैद में बदलने का मतलब हुआ कि अदालत इनके गुनाह को विरलतम नहीं मानती.

मृत्युदंड के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने विरलों में विरलतम का आधार तय किया हुआ है. हालांकि 27 फरवरी,  2002 को गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस की एक बोगी एस 6 में आग लगाकर जिस तरह 59 लोगों को मरने के लिए विवश किया गया, उससे जघन्यतम अपराध कोई और नहीं हो सकता.

गुजरात दंगों पर गठित नानावती आयोग ने भी माना था कि उस बोगी में स्वयं आग नहीं लगी थी, उसे साजिशन जलाया गया था जिसमें केवल एक समुदाय के लोग मरे थे. देश उस कांड को कभी नहीं भूल सकता जिसकी प्रतिक्रिया में गुजरात में भीषण दंगे हुए और उसमें करीब 1200 लोग मारे गए.

हालांकि एक वर्ग गुजरात दंगों पर तो छाती पीटता रहा है, लेकिन गोधरा पर चुप रहता है. पहले एसआईटी की जांच, फिर एसआईटी न्यायालय का फैसला और अब उच्च न्यायालय के फैसले के बाद उन्हें यह तो स्वीकारना होगा कि अपराधियों के एक वर्ग ने जानबूझकर अयोध्या से लौटते कारसेवकों को जलाकर मार डाला तथा ऐसी स्थिति नहीं छोड़ी कि वे अपनी जान बचा सकें.

इनके खिलाफ आपराधिक साजिश, ज्वलनशील पदार्थ जुटाने और समुदाय विशेष के लोगों पर हमला करके मार डालने का आरोप साबित हुआ है. वैसे, दोनों न्यायालयों ने 63 आरोपितों को बरी भी किया है. इनमें मौलाना उमरजी शामिल हैं, जिन्हें एसआईटी ने मुख्य साजिशकर्ता माना था.

इनको इसलिए बरी किया गया क्योंकि पुख्ता सुबूत रखने में एसआईटी विफल रही. मृत्युदंड की जगह 11 लोगों को उच्च न्यायालय ने उम्रकैद दी तो इसका कारण भी यही है कि इनका साजिश में शामिल होना तो साबित हुआ, लेकिन इसके मुख्य साजिशकर्ताओं की सटीक पहचान नहीं हो सकी. फैसले का एक महत्त्वपूर्ण पहलू गोधरा कांड में मारे गए लोगों के परिजनों को सरकार द्वारा 10-10 लाख रुपया मुआवजा देने का आदेश है. न्यायालय की टिप्पणी बिल्कुल उचित है कि राज्य सरकार एवं रेलवे प्रशासन कानून-व्यवस्था बनाए रखने में विफल रहे.



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