आतंक का साया

Last Updated 22 Apr 2017 04:22:55 AM IST

एक बार फिर आतंक के एक बड़े नेटवर्क का खुलासा हुआ. कुछ गिरफ्तारियां भी हुई हैं.


आतंक का साया

सबसे चिंताजनक और खतरनाक पहलू कम से कम एक किशोरवय लड़के का पकड़ा जाना है. यह बताता है कि हमें सामाजिक और राजनैतिक स्तर भी काम करने की दरकार है, ताकि आतंक की विचारधारा को फैलने से रोका जा सके. यह आशंका तो लंबे समय से प्रकट की जा रही है कि सीरिया और इराक में चारों ओर से घिर गए आईएस के सरगनाओं ने अपने साथ लड़ने आए दुनिया भर से लड़कों को वापस अपने देश चले जाने को कहा है ताकि वे अपने देशों में आतंकी वारदातों को अंजाम दें और जेहादी विचारों को आगे बढ़ाएं. हमारे देश से इराक या सीरिया में लड़ने गए लड़कों की तादाद तो गिनती भर की ही मिली. लेकिन खतरा यह है कि यहां आतंक की विचारधारा के प्रसार की कोशिशें की जा सकती हैं.

ये भी खबरें हैं कि आईएस यहां आतंकी मॉड्यूल की भर्ती की साजिश भी रच रहा है. इसलिए खुफिया तंत्र की चौकसी और संभावित मॉड्यूल की धर-पकड़ के अलावा हमें इस पर भी ध्यान रखना होगा कि उसे पनपने देने की माकूल स्थितियां न पैदा हों. जाहिर है, ऐसी स्थितियों की रोकथाम के लिए अलगाव और नफरत पैदा करने वाली घटनाओं पर काबू पाया जाना जरूरी है.

इसमें सबसे जरूरी है कि कश्मीर में मौजूदा हालात बदलने के लिए राजनैतिक प्रक्रिया शुरू की जाए. हाल में श्रीनगर उप चुनाव में महज सात प्रतिशत मतदान बताता है कि घाटी में मुख्यधारा की राजनीति से बड़े पैमाने पर मोहभंग हो रहा है. इसके मायने ये भी हैं कि सख्ती और अर्धसैनिक बलों के जरिए वहां नौजवानों के गुस्से पर काबू पाने की कोशिशें अलगाव बढ़ा रही हैं. इसी तरह देश के बाकी हिस्सों में भी गोरक्षा पर तनाव बढ़ता जा रहा है. इसके चलते कट्टरता और आतंकवाद के लिए जमीन तैयार होती है.

हालांकि, हाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भुवनेर में राष्ट्रीय कार्यकारिणी में कहा कि पिछड़े मुसलमानों के साथ भी न्याय होना चाहिए और उन्हें भी पिछड़ा वर्ग में शामिल किया जाना चाहिए. ऐसे कदमों से अलगाव की भावनाएं कुछ कम हो सकती हैं. और यही आतंक की ओर अल्पसंख्यक समुदाय के युवाओं के झुकाव को खत्म करने में कारगर भूमिका निभा सकता है. बेशक, खुफिया तंत्र को मजबूत करने और चौकस रहने की दरकार है मगर सामाजिक समरसता पैदा करना भी जरूरी है.
 



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