राष्ट्रगान की गरिमा

Last Updated 02 Dec 2016 04:13:37 AM IST

सिनेमाघरों में हर बार फिल्म दिखाने के पहले राष्ट्रगान बजाए जाने से संबंधिात सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अमूमन सभी ने स्वागत किया है.


राष्ट्रगान की गरिमा

देश के हर मानस में हमारी राष्ट्रीय भावना के संचार और राष्ट्रीय प्रतीकों के प्रति सम्मान जगाने के हर कदम का स्वागत होना भी चाहिए. फिर भी कुछ लोगों ने इसके अमल में पर्याप्त सावधानियों की ओर ध्यान दिलाया है और कुछ ने शंकाएं भी जाहिर की हैं.

कुछ न्यायविदों ने राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रीय भावना और राष्ट्रीय प्रतीकों के प्रति सम्मान को वैधानिक नियम-कायदों में बांधने की अनिवार्यता पर भी सवाल उठाया है. सोली सोराबजी जैसे जाने-माने न्यायविदों ने इसे लोगों को जबरन राष्ट्रप्रेम की घुट्टी पिलाने जैसा माना है.

उनके मुताबिक यह हमारी राष्ट्रीयता के मूल विचारों के ही खिलाफ है. संविधान में प्रदत्त निजी स्वतंत्रताओं के अधिकार भी इस आदेश से टकरा सकते हैं. इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ऐसे ही मामले में अपना फैसला सुना चुका है, जो न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और अमिताभ रॉय की दो सदस्यीय पीठ के मौजूदा फैसले से मेल नहीं खाता है.

मौजूदा न्याय पीठ ने संविधान के जिस अनुच्छेद 51 (ए) के तहत यह आदेश सुनाया है, इन्हीं अनुच्छेदों की व्याख्या अगस्त 1986 में न्यायमूर्ति ओ. चिन्नपा रेड्डी और एम.एम. दत्त ने बिजोय इम्मानुएल व अन्य बनाम केरल राज्य मामले में एकदम अलग ढंग से की थी. कानूनविदों के मुताबिक अनुच्छेद 51 (ए) संविधान के उस हिस्से में है, जो न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर है.

अनुच्छेद यह तो कहता है कि ‘संविधान का पालन और राष्ट्रीय झंडे और राष्ट्र गान के प्रति सम्मान जाहिर करना हर नागरिक का कर्तव्य होगा’ लेकिन यह हमारे हर अधिकार और कर्तव्य की तरह ही बिलाशर्त नहीं है.

कुछ नेताओं और फिल्मकारों ने तो यह सवाल भी उठाया है कि यह सिनेमाघरों के लिए ही अनिवार्य क्यों हो, संसद-विधान सभाओं और अदालतों के लिए क्यों नहीं? दरअसल कोर्ट के मौजूदा फैसले से सादर असहमति जताने वाले शायद उस असहिष्णु माहौल से चिंतित हैं, जो राष्ट्रवाद के नाम पर कई बार देखने को मिला है.

असल में राष्ट्रवाद की स्थूल परिभाषा कुछ हद तक असहिष्णुता, कट्टरता की ओर ले जा सकती है, जिसकी कामना राष्ट्र-निर्माताओं ने नहीं की थी. इसलिए राष्ट्रीय प्रतीकों को सम्मान देने के मामले में अतिशय संवेदना के साथ विचार करने की दरकार है, और हर हाल में उनकी गरिमा बनाए रखने की जरूरत है.



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