अस्पताल में बदइंतजामी
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के बुरहानपुर में मेडिकल कॉलेज अस्पताल में आग लगने से शिशु समेत तीन लोगों की मौत हो गई. इससे पहले कोलकाता के निजी एमआरआई अस्पताल में सबसे भीषण आग लगी थी.
अस्पताल में बदइंतजामी (फाइल फोटो) |
यह भारत में किसी अस्पताल में अब तक की सबसे भयावह घटना थी. इसमें कुल 89 लोग मरे थे, जिनमें ज्यादातर मरीज थे. जाहिर है कि मुर्शिदाबाद पहली घटना नहीं है. देश में अस्पतालों में आग लगने के हादसे पहले भी होते रहे हैं. अभी पिछले हफ्ते जालंधर के नजदीक एक निजी अस्पताल में इन्क्युबेटर में आग लगने से पांच नवजात जलकर मर गए. इस तरह की वारदात कमोबेश देश के किसी-न-किसी अस्पताल की कहानी है.
चाहे मुर्शिदाबाद की घटना हो, या दिल्ली के लेडी हार्डिग अस्पताल या फिर इलाहाबाद के जीवन ज्योति अस्पताल की घटना. 2011 में जिस एमआरआई अस्पताल में शार्ट सर्किट से आग लगी और पूरे सात मंजिले परिसर में फैल गई, उसकी जांच में कई बातों का खुलासा हुआ था.
आग लगने के पीछे अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही सबसे बड़ी वजह थी. दुखद तथ्य यह है कि इन सब दुर्घटना में एक बात कॉमन दिखती है. वह है-बिना नियम-कानून के अस्पताल प्रबंधन को फायर ब्रिगेड का अनापत्ति प्रमाण पत्र देना. साथ ही भीड़-भाड़ वाले रिहायशी इलाके में अस्पताल खोलने की इजाजत देना. पर्याप्त सुविधाओं की कौन कहे; सामान्य सुविधाएं देने की जवाबदेही की तरफ से भी प्रबंधन आंख मूंदे रहता है. फिर मुर्शिदाबाद की घटना तो सरकारी अस्पताल की है.
विडंबना है कि- न तो सरकारी स्तर पर और न ही निजी अस्पताल प्रबंधन की तरफ से पर्याप्त फॉयर सेक्टी इंतजाम किए जाते हैं, न बीच-बीच में ऐसी घटना से बचाव के लिए मॉक ड्रिल चलन में हैं. पर्याप्त संसाधन व उपकरण, प्रशिक्षित स्टाफ का न होना भी खतरे को कई गुना बढ़ा देता है. कई अस्पतालों में तो पर्याप्त पानी का भंडार भी नहीं रहता है. राहत और बचाव कर्मी भी कई मामलों में अनुभवहीन देखे गए हैं.
अस्पताल के प्राथमिक मानदंडों के प्रति कोताही इसलिए की जाती है क्योंकि शासन-प्रशासन के एजेंडे में स्वास्थ्य की वैसी अहमियत नहीं दी गई है. तो बुनियादी विमर्श स्वास्थ्य को केंद्र में लाना होगा.
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