कंधे पर ‘सिस्टम’

Last Updated 27 Aug 2016 01:15:08 AM IST

यह सिर्फ दाना मांझी की पत्नी की मौत नहीं है. यह पूरे सिस्टम की मौत है.




कंधे पर ‘सिस्टम’

सालों पहले दशरथ मांझी, जिनकी पत्नी भी प्राथमिक इलाज न मिलने की वजह से अकाल मौत की शिकार हुई, के बाद अब दाना मांझी की पत्नी. पहले मुकम्मल इलाज नहीं मिला, फिर मौत के बाद लाश को घर तक ले जाने के लिए एंबुलेंस नहीं मिली. यह लापरवाही, संवेदनहीनता और अस्पताल कर्मियों के जमीर के मर जाने की पराकाष्ठा है या पूरा-का-पूरा सरकारी तंत्र ही लकवाग्रस्त हो चुका है. सवाल कई हैं?

पर जवाब किसी के पास नहीं. न तो स्थानीय स्तर पर और न ही केंद्रीय स्तर पर. स्टार्टअप-स्टैंडअप और मेक इन इंडिया के दमकते-चहकते दौर में दाना मांझी जैसे कई लोग हांफते-हांफते दम तोड़ रहे हैं या तोड़ चुके हैं. मगर परवाह किसे है? क्योंकि गरीबों को तो ऐसी मौत ही मरना लिखा है..यही उनकी नियति है..एंबुलेंस योजना ‘महाप्रयाण’ ने लगता है जैसे प्राण त्याग दिए हैं.

अगर ऐसा न होता तो दाना को ‘भारत की अद्भुत तस्वीर’ दिखाने का मौका ही नहीं मिलता. उस पर अस्पताल प्रबंधन की लिजलिजी दलील कि दाना ने मदद मांगी ही नहीं..उसने तो शराब पी रखी थी..वगैरह-वगैरह. सच है, राष्ट्रवाद के नारों और ‘देश बढ़ रहा है’ की खोखली किंतु लोकलुभावन दलीलों के बीच अगर कोई शख्स इस तरह से 10 किलोमीटर तक अपने कंधे पर अपनी पत्नी का मुर्दा ढोये, तो समझ लें कि वह अपने कंधे पर कितनी लाशें ढो रहा था. विडंबना ही है कि आजादी के 70 साल बाद भी इस तरह की खबरें देश के करीब हर प्रांत से आती रहती है.

चाहे वह लखनऊ से सटे बहराइच जिले की व्यथा हो, जहां मात्र बीस रुपये रित न देने के चलते एक बच्चे की मौत हो गई या मध्य प्रदेश के उमरिया की घटना, जहां दो लोग रात भर कंधे पर अपने रिश्तेदार की लाश ढोते दिखे. दरअसल, घिन्न तब आती है, जब गलती पर पश्चाताप करने के बजाय सरकारी अमला लीपापोती में लग जाता है.

ज्यादा हल्ला मचा तो एकाध के निलंबन की सतही कार्रवाई. लो जी, हो गया एक्शन. मगर इस एक्शन से क्या दुनिया से जाने वाला लौट आएगा या जिसके अपने चले गए, उनकी संवेदना को ताकत मिलेगी. यह सोचना भी पाप है.

आज का समाज अब ऐसे दौर में जाता दिख रहा है, जहां संवेदना रूपी द्रौपदी का ताकतवर और निरंकुश सिस्टम के हाथों हर रोज चीरहरण किया जा रहा है. गरीब-बेबस और शोषण से पीड़ित जनता बस चीत्कार ही कर सकती है. आवाज उठाने वाला तबका भी थका सा दिखता है. किस पर यकीन करें.



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