नहीं रहा रंगों का जादूगर

Last Updated 25 Jul 2016 05:43:39 AM IST

भारत में आम आदमी के चर्चित चित्रकार तो हुसैन साहब थे पर रंगों के जादूगर, भारत के मातिस, अमूर्तन के नायक, प्रोग्रेसिव ग्रुप के आधार स्तम्भ आदि कई उपनामों से चर्चित चित्रकार सैयद हैदर रजा कलाकारों में ज्यादा लोकप्रिय थे. उनका चले जाना सचमुच आधुनिक भारतीय कला की बहुत बड़ी क्षति है.




रंगों के जादूगर सैयद हैदर रजा नहीं रहे (फाइल फोटो)

भारत के नागरिक सम्मान पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्म विभूषण के अलावा उन्हें 14 जुलाई 2015 को फ्रांस के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से भी सम्मानित किया गया. रजा हमारे समकालीन ही नहीं बल्कि आधुनिक भारतीय कला के प्रस्थान बिंदुओं में से एक कलाकार थे. साहित्य में जिस तरह  प्रेमचंद और निराला का नाम लिया जाता है, उसी तरह भारतीय कला में हुसैन, रजा और सुजा का नाम लिया जाता है.

पूरे विश्व में आधुनिक कला पश्चिमोन्मुख ही रही है. इसीलिए जब भारतीय आधुनिक कला की शुरुआत में भारत में कला का एक ध्रुव बंगाल स्कूल भारतीयता और पारम्परिक मूल्यों की पुरजोर वकालत कर रहा था, उसी समय इसके विरोध में मुंबई में इन्होंने आरा और सुजा के साथ मिलकर \'प्रोग्रेसिव आर्ट ग्रुप\' की स्थापना की.

यह ग्रुप पश्चिमी कला आंदोलनों से प्रभावित तो था पर भारतीय कला को यूरोपीय यथार्थवाद के शिकंजे से स्वतंत्र कर भारतीय आधुनिकता की खोज कर रहा था. बाद में हुसैन, रामकुमार जैसे और भी कलाकार जुड़ते गए. प्रारंभिक दौर में रजा भी दृश्यचितण्रकिया करते थे. इन्होंने भी अपनी भारतीय विशिष्टता की मुक्कमल पहचान पेरिस में जाकर बनाई.



सैयद हैदर रजा के चित्र भारतीय स्मृतियों के दृश्यालेख सरीखे हैं. वह ताउम्र भारतीय दर्शन से प्रभावित रहे. बिंदु,अकुरन आदि सीरीज में यह देखा जा सकता है. वह उम्रभर बौद्धिक संवेदनाओं से भरा रंगों का अद्भुत लोक रचते रहे जो सांगीतिक आस्वाद कराते हैं. रजा शांत स्वभाव के कलाकार थे. जितने आत्मीय उनके चित्र हैं, उतने ही सहज और आत्मीय स्वयं रजा भी थे.

साहित्यकारों और कलाकारों की मदद के लिए जीवन भर की कमाई से रजा फाउंडेशन की स्थापना की. आज रजा नहीं है, पर उनकी मुस्कान और अंतरंगता सबके मन में सदा बसी रहेगी. रजा कहीं नहीं गए, वह हर कलाप्रेमी के दिल में रंगों की उत्सवधर्मिंता के रूप में बस गए हैं.

 

 



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