राजन राग

Last Updated 30 May 2016 06:47:45 AM IST

रघुराम राजन 2008 की आर्थिक मंदी की भविष्यवाणी करके सुर्खियों में आए थे.




आरबीआई के गवर्नर रघुराम राजन (फाइल फोटो)

हालांकि उन्होंने 2003 से 2007 तक अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुख्य अर्थशास्त्री के नाते जब 2005 में वित्तीय पूंजीवाद की कुछ मूलभूत गड़बड़ियों की ओर इशारा करके इस मंदी की आशंका जाहिर की थी तो उन्हें खारिज कर दिया गया था. बाद में वे सही साबित हुए. उनकी इसी प्रसिद्धि को ध्यान में रखकर पूर्व यूपीए सरकार ने अर्थव्यवस्था के संकट के दौर में बेकाबू मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए 2013 में उन्हें रिजर्व बैंक का गवर्नर बना दिया.

उन्होंने सख्त मौद्रिक नीतियों के जरिए इस काम में कामयाबी भी हासिल की. यूपीए सरकार के आखिरी वर्षो में पी. चिदंबरम के तहत वित्त मंत्रालय भी वृद्धि में तेजी लाने के लिए ब्याज दरों में कुछ ढिलाई का हिमायती था, लेकिन राजन की राय अलहदा थी और उस पर वे टिके रहे. अंतत: 2014 की पहली तिमाही में स्थितियां काबू में आने लगीं और बाजार की हालत सुधरने लगी.

उसके बाद आई मोदी सरकार के सामने वाजिब नीतियों के जरिए आर्थिक माहौल में तेजी लाने और निवेश बढ़ाने की चुनौती थी. लेकिन लगातार दो साल के सूखे और माकूल नीतियों के अभाव में ग्रामीण अर्थव्यवस्था मोटे तौर पर बैठने लगी. बाजार में मांग की कमी से उत्पादन क्षेत्र में लगातार गिरावट और वैश्विक मंदी के असर से शहरी अर्थव्यवस्था में भी मंदी पसरने लगी.

मोदी सरकार ने \'मेक इन इंडिया\' से लेकर कई कार्यक्रम तो शुरू किए, लेकिन उनका असर नहीं दिखा. हालांकि राजन चेताते रहे कि निर्यात और विदेशी पूंजी निवेश आधारित मॉडल चीन में भी गिरावट की ओर जा रहा है. इसलिए हमें घरेलू बाजार को ही ध्यान में रखकर नीतियां तैयार करनी होंगी. लेकिन मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते भी बड़े उद्योगों और कारोबार पर ज्यादा जोर देते रहे हैं इसलिए छोटे उद्योग-धंधों की ओर उनकी सरकार का ध्यान कुछ हद तक 2016 के बजट में ही जा सका.

अब स्वामी कहते हैं कि राजन ने सख्त मौद्रिक नीति के जरिए उद्योगों को नष्ट कर दिया. हालांकि पीएम या वित्त मंत्री ने ऐसा कुछ नहीं कहा है पर यह मान लेना गैर-मुनासिब नहीं कि भाजपा और मोदी सरकार के हितैषियों का एक वर्ग राजन को दूसरा टर्म देने के पक्ष में नहीं है. लेकिन हटाने के लिए किसी अर्थशास्त्री की इस तरह छिछालेदर करना कितना जायज है, इस पर सवाल उठाए जा सकते हैं. कांग्रेस शायद यही कह रही है.

 



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