'कभी न भूलने वाले शनिवार'

सुधा ने 25 अप्रैल के उस दिन को ‘कभी न भूलने वाले शनिवार’ की संज्ञा दी और कहा कि मैं मुश्किल से चलकर दरवाजे तक पहुंच सकी और दरवाजों को जितना कसकर हो सकता था कसकर पकड़े खड़ी रही और मंत्रों का उच्चारण करने लगी.

 
 
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