...और नाच उठे किन्नर

PICS: सुप्रीम कोर्ट के फैसले से किन्नरों में खुशी की लहर

प्रकृति प्रदत्त चिकित्सीय खामियों ने उन्हें जन्मजात दर्द दिया तो समाज ने उन्हें कदम कदम पर उपेक्षा और अपमान दिया. समाज में न उनकी कोई पहचान है और न कोई विशेष दर्जा. यह उपेक्षित वर्ग कहीं टोलियां बनाकर लोगों के घरों में दुवाएं बांटता है तो कहीं पेट भरने के लिए रेलगाड़ियों या चौराहों पर हाथ फैलाकर भीख मांगने को मजबूर है. सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने किन्नरों को समाज की मुख्यधारा में लाने की एक शुरुआत तो की है लेकिन इनके प्रति सामाजिक नजरिया एक ऐसा बड़ा सवाल है जिसका समाधान अपेक्षित है. सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को किन्नरों की उपेक्षा और उत्पीड़न से संबंधित एक याचिका पर फैसला सुनाते हुए किन्नरों को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता देने, उन्हें सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण देने तथा पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, मतदाता पहचान पत्र आदि सुविधाएं उपलब्ध कराने के आदेश दिये हैं.

 
 
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