'बेतरतीबी' ही थी उनकी असल ताकत

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18 सितम्बर, 2012 को खुशवंत ने अपने स्तंभ ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर में लिखा था कि अब समय आ गया है कि वह अपने बूटों को टांग दें, एक बार पीछे मुड़कर देखें और अंतिम यात्रा के लिए तैयार हो जाएं।, लेकिन जिंदगी यह सिलसिला खत्म करने की इजाजत ही नहीं देती.

 
 
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