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किताब के अनुसार, ‘‘शायद इसी दबाव में राजेश ने हर शाम दोस्तों के साथ महफिल जमानी शुरू कर दी. शराब की चुस्कियों के साथ दोस्तों से दिल की बातें, दिन भर की थकान के बाद उन्हें अजीब सा आराम देती थीं. जैसे जैसे रात घिरती, शराब बहती जाती, बातों और कहकहों की आवाज ऊंची होती जाती. यह माहौल राजेश खन्ना को उनके थियेटर के दिनों की याद दिलाता था.’’
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