सूरदास से प्रेरित थे निदा फाजली

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निदा फाजली ने ग्वालियर कालेज से स्नातकोत्तर की शिक्षा पूरी की और अपने सपनों को एक नया रूप देने के लिये वह वर्ष 1964 में मुंबई आ गये. यहां उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. इस बीच उन्होंने धर्मयुग और ब्लिटज जैसी पत्रिकाओं में लिखना शुरू कर दिया. अपने अनूठी लेखन शैली से निदा फाजली कुछ ही समय में लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में कामयाब हो गये. उसी दौरान उर्दू साहित्य के कुछ प्रगतिशील लेखकों और कवियों की नजर उन पर पड़ी, जो उनकी प्रतिभा से काफी प्रभावित हुये थे. निदा फाजली के अंदर उन्हें एक उभरता हुआ कवि दिखाई दिया और उन्होंने निदा फाजली को प्रोत्साहित करने एवं हर संभव सहायता देने की पेशकश की और उन्हें मुशायरों में आने का न्योता दिया. उन दिनों उर्दू साहित्य के लेखन की एक सीमा निर्धारित थी. निदा फाजली मीर और गालिब की रचनाओं से काफी प्रभावित थे. धीरे-धीरे उन्होंने उर्दू साहित्य की बंधी-बंधायी सीमाओं को तोड़ दिया और अपने लेखन का अलग अंदाज बनाया. इस बीच निदा फाजली मुशायरों में भी हिस्सा लेते रहे, जिससे उन्हें पूरे देश भर मे शोहरत हासिल हुई.

 
 
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