Review: पॉलिटिक्स, पुलिस और पब्लिक की ‘जय गंगाजल’

Review: पॉलिटिक्स, पुलिस और पब्लिक की ‘जय गंगाजल’

हालांकि कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है भोलानाथ सिंह को ये समझ में आने लगता है कि पांडे बंधु सिर्फ अपने मतलब के लिए उसका इस्तेमाल कर रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ बांकेपुर के लोग भी विधायक और उसके गुंडो की गुड़ागर्दी से तंग आ चुके है और मौका मिलते ही उनसे बदला लेने की ताक में है. प्रकाश झा इससे पहले ‘गंगाजल’, ‘आरक्षण’, ‘राजनीति, ‘सत्याग्रह’ और चक्रव्यूह जैसी फिल्मों में राजनीतिक तरीके से मुद्दों को उठाते रहे है. ‘जय गंगाजल’ में भी उन्होंने पॉलटिक्स, पुलिस और पब्लिक के बीच का मुद्दा उठाया है हालांकि इसमें कुछ नयापन नहीं हैं. फिल्म को देखने के बाद लगता है कि यह जरूरत से लगभग 40 मिनट बड़ी है. शायद अभिनय पर ज्यादा ध्यान देने के कारण निर्देशन पर वह पूरा ध्यान नहीं दे पाये. सिनेमा घरों में लोग इंतजार करने लगते है कि फिल्म कब खत्म होगी.

 
 
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