अनूठी कठपुतलियों की अनोखी कहानी

 कबाड़ से भी बनती है मनोरंजन करने वाली कठपुतलियां

बहुत से लोगों के लिए कठपुतली नाच का अर्थ सिर्फ राजस्थान की पारंपरिक कठपुतलियां या छड़ी, धागे, दस्ताने और छाया वाले पुतले हैं, फिर भी समकालीन भारतीय कठपुतली का खेल दिखाने वाले लोग अब कबाड़, अखबार की पट्टियों, प्लास्टिक और अन्य सामान के साथ प्रयोग कर रहे हैं. यही कहानी है दिल्ली के पपेट आर्ट्स ट्रस्ट कटकथा के नए मटीरियल थिएटर प्रोडक्शन ‘लाइफ इन प्रोग्रेस’ की. यह ट्रस्ट कठपुतलियों के माध्यम से कबाड़ की संस्कृति का शोध करता है. कटकथा की प्रबंधक ट्रस्टी अनुरूपा रॉय कहती हैं, ‘‘हमने कचरे की हर उस किस्म के साथ खेल किए, जो भी हमें मिल सकती थीं. हमने अखबारों के बंडलों, प्लास्टिक की बोतलों और दूसरे कबाड़ के साथ प्रयोग किए. कचरे से प्रतीक बनाने के लिए हम कई महीनों तक खेले ताकि समकालीन परिदृश्य पर प्रकाश डालने वाली कला का निर्माण किया जा सके’’. इस दल में नौ उत्साही कठपुतली वाले हैं. इन लोगों ने ‘कबाड़ के साथ खेल करके ऐसी तकनीक बनाने की कोशिश की जो कठपुतली नाच के पारंपरिक रूपों से अलग रास्ता बनाएगी’.

 
 
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