क्यों करते हैं गणपति की विदाई?

 गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ

मुंबई समेत पूरे महाराष्ट्र में आज दस दिन के बाद गणपति का विसर्जन शुरु हो गया है. इस दौरान मुंबई में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है. भगवान बारह दिन और माता दुर्गा नौ दिन हमारे घर में रहती हैं. उत्सव के आखिरी दिन हम इनकी प्रतिमाओं को नदी, तालाब या किसी अन्य जलस्रोत में विसर्जित कर देते हैं. दरअसल यह एक परंपरा ही नहीं है, इसके पीछे बहुत बड़ी वैज्ञानिकता और दर्शन छिपा है. वास्तव में जल से सारी सृष्टि की उत्पत्ति हुई है और जल ही पूरी सृष्टि का मूल है. जल बुद्धि का प्रतीक है और गणपति इसके अधिपति हैं. प्रतिमाएं नदियों की मिट्टी से बनती है. हम अपनी शुद्ध बुद्धि से यह कल्पना करते हैं कि इसमें भगवान विराजित हैं. अंतिम दिन हम प्रतिमाओं को जल में इसी लिए विसर्जित कर देते हैं क्योंकि वे जल के किनारे की मिट्टी से बने हैं और हमारी श्रद्धा से ही उसमें परमात्मा विराजित है. गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दर्शी तक गणेशोत्सव दस दिनों तक मनाया जाता है. भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी ही गणेश चतुर्थी कहलाती है.हिंदू धर्म-संस्कृति में अनेक देवी-देवताओं को पूजा जाता है. इन सभी में सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है. उनको विघ्ननाशक और बुद्धिदाता भी कहा जाता है. किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत उन्हीं का नाम लेकर की जाती है.

 
 
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