घातक आत्मग्लानि

Last Updated 04 May 2024 01:08:52 PM IST

कर्नाटक हाई कोर्ट ने ‘जाओ फांसी लगा लो’ कहने को आत्महत्या के लिए उकसाने की श्रेणी में रखने से मना कर दिया। अदालत आपत्तिजनक बयानों से जुड़े आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले की जटिलताओं को दूर करने के मुद्दे पर विचार कर रही थी।


कर्नाटक हाई कोर्ट

तटीय कर्नाटक के उडुपी में गिरजाघर में पादरी की मौत के सिलसिले में हत्या के लिए उकसाने के आरोपों से जुड़ी याचिका पर अदालत ने यह कहा। आरोप है कि पादरी और याचिकाकर्ता की पत्नी के दरम्यान दैहिक संबंध थे। दोनों के बीच हुई बहस में उसने पादरी को मरने के लिए कहा।

एकल जज की पीठ ने सर्वोच्च अदालत के पूर्व निर्णयों के आधार पर कहा सिर्फ बयानों को उकसाने वाला नहीं माना जा सकता। अदालत ने पिता और पादरी होने के बावजूद मानव मन की जटिलताओं का जिक्र करते हुए मामले को खारिज कर दिया। जिम्मेदार और  धार्मिक पद पर होने के बावजूद सामाजिक मूल्यों का अनादर करने वाला शख्स आत्मग्लानि के चलते भी जिंदगी समाप्त कर सकता है। अपने समाज में साल दर साल आत्महत्याओं के मामले बढ़ते जा रहे हैं।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार सिर्फ एक साल (2022) में प्रति दिन 468 लोगों ने अपनी जान ली। खुद की जान लेने वालों में युवाओं की संख्या बढ़ती जा रही है। खासकर सामाजिक-पारिवारिक कारणों से लोग खुदकुशी कर लेते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार अपनी जिंदगी से उकता कर, निराश होकर या आवेश में आत्महत्या करने वाले भी मानसिक तौर पर इसके लिए तैयार होते हैं, जिसके संकेत वे लगातार अपने करीबियों, परिवार या मित्रों को देते रहते हैं, जिसकी प्राय: अनदेखी की जाती है।

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मानसिक प्रताड़ना, उलाहनों, उत्पीड़न और दोष मढ़े जाने से आजिज आकर भी लोग अपनी जान ले लेते हैं। मगर इस मामले में केवल कहासुनी के दौरान मरने का ताना देना ही काफी नहीं कहा जा सकता। आत्म-गलानि भरे उपासकों के पाप-स्वीकरण सुनने वालों के प्रति आम जन जो सम्मान का भाव रखता है, उसका दुष्चरित्र होना, सामाजिक तौर पर अस्वीकृत और तिरस्कृत होता है। इसी सब से भयभीत होकर मृतक को यह कदम उठाना पड़ा होगा। 



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