पर्थ में शतक ने मेरा करियर बदला : सचिन तेंदुलकर

Last Updated 23 Jul 2014 09:06:10 PM IST

भारतीय दिग्गज बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर ने 1992 में पर्थ की तेज और उछाल भरी पिच पर 114 रन की अपनी पारी को फिर से सर्वश्रेष्ठ करार दिया.


सचिन तेंदुलकर रेयान इंटरनेशनल स्कूल के बच्चों से बात करते हुए.

तेंदुलकर ने बुधवार को कहा कि वाका में ऑस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाजी आक्रमण के सामने खेली गयी इस पारी ने उनका मनोबल बढ़ाया और इसके बाद उनका करियर बदल गया.

उन्होंने मुंबई में स्कूली बच्चों के साथ बातचीत में कहा, \'\'एक पारी जिसने मेरा करियर बदला या मेरे करियर को दिशा दी वह पर्थ में 1992 की पारी थी. पर्थ को तब सबसे तेज विकेट माना जाता था और ऑस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाज इतने खतरनाक थे कि उनसे पार पाना मुश्किल था. तब मैं शतक जड़ने में सफल रहा और उस समय मैं केवल 19 साल का था.\'\'

\"\"तेंदुलकर ने कहा, \'\'और इससे केवल दो मैच पहले मैंने सिडनी में शतक लगाया था लेकिन वे दोनों अलग-अलग तरह की पिचें थी. मैं जानता था कि पर्थ का विकेट ऐसा है जैसा मुझे दुनिया में कहीं और नहीं मिलेगा और यदि मैं पर्थ में बल्लेबाजी करके रन बना सकता हूं तो फिर मैं किसी भी पिच पर रन बनाने में सफल रहूंगा.\'\'

उन्होंने कहा, \'\'तब मेरे करियर की शुरूआत ही हुई थी. मैंने पिछले दो साल से अच्छा प्रदर्शन किया था लेकिन पर्थ की पारी के बाद मेरा करियर बदल गया क्योंकि मुझे महसूस हुआ कि मैं दुनिया का सामना करने के लिये तैयार हूं. मैं अति आत्मविश्वास में नहीं था लेकिन मेरा खुद पर विश्वास बढ़ गया और मैं किसी भी चुनौती का सामना करने के लिये तैयार था.\'\'

यह स्टार बल्लेबाज रेयान इंटरनेशनल स्कूल के बच्चों से मुखातिब था. उन्होंने यह प्रतिक्रिया तब की जब एक छात्र ने उनसे पूछा कि उनके 51 टेस्ट शतकों में से सर्वश्रेष्ठ शतक कौन है. अपने करियर में तेंदुलकर ने वनडे क्रिकेट में भी 49 शतक लगाये.

तेंदुलकर ने पिछले साल नवबर में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया था. अपने करियर के दौरान उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में 200 मैचों में 53.78 की औसत से 15,921 रन और 463 वनडे मैचों में 44.83 की औसत से 18,426 रन बनाये.

इस स्टार बल्लेबाज ने कहा कि भले ही उनके पिता क्रिकेट में दिलचस्पी नहीं रखते थे लेकिन अपना करियर का चयन करने में उन्होंने उनका समर्थन किया और यही रवैया वह अपने बच्चों के साथ भी अपनाते हैं.

\"\"उन्होंने कहा, \'\'मेरे मामले में मेरे पिताजी ने यह फैसला नहीं किया कि मुझे क्रिकेट खेलनी चाहिए. उन्होंने मुझे खुद का करियर चुनने की छूट दी. उन्होंने पाया कि मेरी इसमें दिलचस्पी है और निश्चित तौर पर मेरे भाई ने मदद की.\'\'

तेंदुलकर ने कहा, \'\'मेरे पिताजी की क्रिकेट में कतई दिलचस्पी नहीं थी लेकिन मेरे भाई की वजह मैं क्रिकेट में आया. मेरे भाई ने कहा कि हमें उसे ग्रीष्मकालीन शिविर में भेजना चाहिए और मैं काफी नटखट बच्चा था. इस तरह से मेरे करियर की शुरूआत हुई.\'\'

उन्होंने कहा, \'\'मैं अपने बच्चों के साथ भी ऐसा चाहता हूं. मेरे बेटा (अर्जुन) क्रिकेट का आनंद उठाता है. इससे पहले उसे फुटबाल पसंद था और फिर शतरंज. अब वह क्रिकेट पसंद करता है. मैंने उससे कहा कि वह जिंदगी में जो भी चाहता है उसके प्रति गंभीर और ईमानदार रहे. मैंने उससे कहा कि मैं उसका समर्थन करूंगा और वह जो भी बनना चाहता है उससे में उसका मार्गदर्शन करूंगा.\'\'

तेंदुलकर ने कहा, \'\'इसी तरह से मेरी बेटी (सारा) अपनी मां के पदचिन्हों पर चलना चाहती है. वह चिकित्सक बनना चाहती है और हम उसका पूरा समर्थन कर रहे हैं. यह उनकी पसंद है.\'\'



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