क्या खुले अंतरिक्ष में जीवन पनप सकता है?

Last Updated 10 May 2016 05:16:18 PM IST

वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि अंतरिक्ष के बेहद मुश्किल हालात में भी जिंदगी पैदा हो सकती है.


क्या खुले अंतरिक्ष में जीवन पनप सकता है?

जब हम एलियंस का खयाल करते हैं तो यही सोचते हैं कि अंतरिक्ष में कहीं दूर किसी ग्रह पर एलियन रहते होंगे, हम ये नहीं सोचते कि ब्रह्मांड में ही कहीं एलियन रहते हैं. 

अभी पिछले महीने ही वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि अंतरिक्ष के बेहद मुश्किल हालात में भी जिंदगी पैदा हो सकती है, फ्रांस की ‘नाइस यूनिर्वसटिी’ की कॉर्नेलिया मेंनर्ट और उनके साथियों ने दिखाया कि जमे हुए पानी, मेथेनॉल और अमोनिया को इकट्ठा किया जाए तो चीनी के अलग-अलग रूपों में तब्दील किया जा सकता है. 
 
इनसे ‘डीएनए’ और ‘आरएनए’ बन जाएंगे, किसी भी जीव के ये बुनियादी हिस्से होते हैं, कहने का मतलब ये कि अंतरिक्ष में जिंदगी के लिए ये जरूरी चीजें इकट्ठी हो जाएं और फिर इनकी बारिश किसी ग्रह पर हो, तो वहां जिंदगी की गुंजाइश बन जाती है, हालांकि कुछ वैज्ञानिक ये भी कहते हैं कि जिंदगी पनपने के लिए किसी ग्रह का होना जरूरी नहीं खुले अंतरिक्ष में भी जिंदगी पनप सकती है. 
 
आखिर इसकी कितनी उम्मीद है? अंतरिक्ष में तापमान जीरो होता है, फिर वहां पर कोई वायुमंडल नहीं होता, वैक्यूम होता है, ‘डीएनए’ बनाने के लिए चीनी और अमीनो एसिड तो मौजूद हैं, लेकिन सिर्फ इनसे काम नहीं बन सकता, इन सबका एक सही जगह इकट्ठा होना जरूरी है, जिससे जिंदगी की बुनियाद पड़े. 
 
अंतरिक्ष भी रेगिस्तान जैसा ही है, यहां पर जिंदगी पनपने की उम्मीद है, किसी भी जीव के लिए बुनियादी केमिकल, कार्बन माना जाता है, वैसे सब जीव कार्बन के बने नहीं होते, मगर ज्यादातर में ये बुनियादी केमिकल होता है. 
 
ब्रिटेन की ‘एडिनबर्ग यूनिर्वसटिी’ के वैज्ञानिक चार्ल्स कॉकेल कहते हैं कि कार्बन से बने जीवों के लिए पानी का होना जरूरी है, वैसे बिना पानी के भी जिंदगी पनप सकती है, कई उल्कापिंडों पर जिंदगी के जरूरी बुनियादी केमिकल पाए गए हैं, मगर इन केमिकल के बीच आपस में रिएक्शन होना जरूरी है, अंतरिक्ष में ऐसा होना मुमकिन नहीं, तभी अंतरिक्ष में अब तक जिंदगी नहीं पनप सकी. 
 
हालांकि आगे भी ऐसा नहीं होगा, ये नहीं कहा जा सकता, अंतरिक्ष में विकिरण बहुत है।, इनके असर से भी केमिकल रिएक्शन हो सकता है, वैज्ञानिक मानते हैं कि अंतरिक्ष में छोटे स्तर पर तो केमिकल रिएक्शन हो भी सकता है, मगर जिंदगी के लिए जितना जरूरी है, उतने बड़े पैमाने पर वैक्यूम में केमिकल रिएक्शन होना मुश्किल है, वैज्ञानिक कहते हैं कि किसी ग्रह पर जिंदगी के लिए जरूरी दो बुनियादी चीजें आसानी से मिल जाती हैं गर्मी और रौशनी, ऊर्जा उन्हें अपने सितारों से मिल जाती है. 
 
वैसे वैज्ञानिक कहते हैं कि धरती पर जिंदगी को पहली ऊर्जा सूरज से नहीं, ज्वालामुखी विस्फोट से मिली, आज भी ज्वालामुखी विस्फोट से धरती के भीतर की ऊर्जा बाहर निकलती है, धरती के अलावा बृहस्पति ग्रह के तमाम चंद्रमा पर भी ज्वालामुखी पाए जाते हैं, इसी तरह इन छोटे ग्रहों के भीतर भरी ऊर्जा से ये करोड़ों सालों में इतने गर्म हो सकते हैं कि इन पर जिंदगी पनपने की गुंजाइश हो सकती है, इन ग्रहों का घना वायुमंडल भी जिंदगी पनपने में मददगार साबित हो सकता है, स्टीवेंसन जैसे वैज्ञानिक मानते हैं कि ऐसे ग्रहों पर जिंदगी पनप तो सकती है, मगर धरती जैसा विकास होना मुमकिन नहीं.
 



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