सियाचिन में भी कारगर है इसरो की अंतरिक्ष तकनीक

Last Updated 05 Apr 2016 11:23:37 AM IST

इसरो ने बेहद हल्के वजन वाला पदार्थ विकसित किया है, जिससे दुनिया के सबसे ज्यादा ऊंचाई पर स्थित युद्धक्षेत्र में तैनात भारतीय सैनिकों की कीमती जिंदगियां बच सकती हैं.


सियाचिन में भी कारगर है इसरो की अंतरिक्ष तकनीक

सियाचिन ग्लेशियर में तैनात सैनिकों के लिए पाकिस्तानी सेना की गोलियों से भी बड़ा दुश्मन वहां का बेहद सर्द मौसम है, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा अतंरिक्ष में इस्तेमाल के लिए विकसित की गई कुछ तकनी को यदि जल्द ही प्रभावी तरीके के साथ हमारे सैनिकों की सुरक्षा में लगाया जाए, तो वहां मरने वाले सैनिकों की संख्या में बड़ी गिरावट आ सकती है. 

इसरो ने दुनिया का सबसे हल्का उष्मा रोधी पदार्थ की खोज की है और उच्च क्षमता से लैस खोजी एवं बचाव बीकन (संकेत दीप) तकनीक विकसित की हैं, जो दुनिया के सबसे ज्यादा ऊंचाई पर स्थित युद्धक्षेत्र में तैनात भारतीय सैनिकों के जीवन की भारी मुश्किलें कुछ कम कर सकती हैं और उनकी कीमती जिंदगियां बचा भी सकती हैं.
 
6000-7000 मीटर की ऊंचाई पर खराब मौसम सैनिकों की मौत का एक बड़ा कारण है, भारतीय प्रयोगशालाओं में विकसित हो रही हालिया तकनीक यदि सैनिकों तक पहुंच जाएं तो उनमें से कितने ही लोगों की जिंदगियां बचाई जा सकती हैं, कई सुधारों के बावजूद, अब भी भारतीय सैनिक बहुत भारी कपड़े ही पहनते हैं. 
 
अब इसरो के वैज्ञानिकों ने एक बेहद हल्के वजन वाला पदार्थ विकसित किया है, जो एक प्रभावी उष्मा रोधक (इंसुलेटर) की तरह काम करता है, हाथ में पकड़कर इस्तेमाल किया जा सकने वाला ‘खोज एवं बचाव’ रेडियो सिग्नल एमिटर (उत्सर्जक) सैनिकों के लिए एक अन्य उपयोगी उपकरण साबित हो सकता है, इसके सिग्नलों को उपग्रहों के जरिए पहचाना जा सकता है, इससे लापता या हिमस्खलन में दबे सैनिकों की स्थिति का प्रभावी ढंग से पता लगाने में मदद मिल सकती है.
 
जाने-माने रॉकेट वैज्ञानिक एवं तिरुवनंतपुरम स्थित विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) के निदेशक के. सिवान का कहना है कि उच्चस्तरीय अंतरिक्षीय अनुप्रयोगों के लिए विकसित किए गए इन पदार्थो और तकनीक में थोड़े से सुधार के बाद इन्हें सामाजिक इस्तेमाल के लिए आसानी से तैयार किया जा सकता है. 
 



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