अकाल,सूखे के खिलाफ लड़ने वाले नये वंशाणु की खोज
अकाल और सूखे की चपेट से कृषि उत्पादों को बचाने के लिए नयी खोजों में जुटे वैज्ञानिकों ने एक ऐसे वंशाणु का पता लगाया है, जो पौधों को विपरीत परिस्थितियों में भी फलने-फूलने में मदद देगा.
अकाल,सूखे के खिलाफ लड़ने वाले नये वंशाणु की खोज (फाइल फोटो) |
हांगकांग विश्वविद्यालय की यह खोज ‘प्लांट सेल एंड एनवायरमेंट’ में प्रकाशित हुई है. प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया भर के वैज्ञानिक लंबे समय से ऐसी तकनीक की खोज में जुटे थे जिससे पौधों के अंदर सूखे और अकाल के खिलाफ लड़ने की क्षमता विकसित की जा सके. कई देशों में अकाल और सूखे की समस्या बहुत गंभीर है. कई देशों में किसान फसल के नुकसान के कारण आत्महत्या करते हैं. ग्लोबल वार्मिंग(वैश्विक तापवृद्धि) के कारण इस समस्या के अधिक गंभीर होने की संभावनायें हैं.
दरअसल ग्लोबल वार्मिंग के कारण पानी और जमीन की सतह से भाप बनकर उड़ने वाली नमी की मा अधिक हो जाती है जिससे दुनिया भर के कई हिस्सों में सूखे की स्थिति पैदा होती है. समय के साथ-साथ जैसे जैसे वैश्विक तापमान में वृद्धि होती रहेगी , वैसे -वैसे दुनिया भर में अकाल और सूखाग्रस्त इलाकों में बढोतरी होती रहेगी. इसके कारण पूरे वि को खाद्यान्न की कमी के गंभीर संकट से जूझना होगा.
पिछले कुछ साल से वैज्ञानिक इस समस्या को हल करने में जुटे थे. वे इस बात का शोध कर रहे थे कि किस तरह पौधों के अंदर ही सूखे से लड़ने की क्षमता बढायी जा सके ताकि शुष्क मौसम में भी फसल के उत्पादन पर कोई असर न पड़े.
हांगकांग विश्वविद्यालय ने एक ऐसी तकनीक ईजाद की है,जो पौधों के अंदर सूखे से लड़ने की क्षमता विकसित करेगा. इस तकनीक को बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त एक कृषि उत्पाद कंपनी लाइसेंस भी हासिल कर चुकी है.
शोधकर्ताओं ने एक मॉडल पौधे एराबाइडोपसिस थैलियाना में एक ऐसे वंशाणु (जीन) को पहचाना है, जो एकाइल -सीओए-बाइडिंग प्रोटीन को इनकोड करता है, जिससे पौधे में सूखे से लड़ने की क्षमता विकसित होती है.
शोधकर्ता प्रोफेसर सी.मी लेन, विल्सन और एमेलिया वांग ने पाया कि इस प्रोटीन के कारण ही एराबाइडोपसिस पौधे में सूखे से लड़ने की क्षमता पैदा होती है. प्रोफेसर लेन ने बताया कि सूखे से लड़ने के कारण पौधों की विकास अवरूद्ध होता है और साथ ही उत्पादन क्षमता भी घटती है. पत्तों और तनों में मौजूद स्टोमाटा पौधों द्वारा छोड़े गये वाष्प के लिए जिम्मेदार होता है और यह प्रोटीन स्टोमाटा का नियांण करने वाले तां को प्रभावित करता है.
शोधकर्ताओं ने इस शोध के लिए एराबाइडोपसिस को चुना और सारे शोध कैमेलिना साटिवा को लक्ष्य करके किये. कैमेलिना जैवईंधन है. कैमेलिना प्रतिकूल वातावरण में भी उगाया जा सकता है और इसमें खाद और कीटनाशक की जरूरत भी काफी कम होती है. कैमेलिना के इसी गुण को देखते हुए इसे शोध के लिए चुना गया.
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