दिल के काम करने के तरीके से बनेगी बिजली

Last Updated 30 Aug 2015 12:20:25 PM IST

स्वीडन के वैज्ञानिकों ने मनुष्य के दिल के काम करने के सिद्धांत पर समुद्र की लहरों से बिजली बनाने की योजना बनाई है.


समुद्र की लहरों से बनेगी बिजली (फाइल फोटो)

पेशे से हृदय रोग चिकित्सक डॉ़.एल स्टिग ने 1984 में डायनेमिक एडेप्टिव पिस्टन पंप तकनीक (डीएपीपीटी) का विकास किया था और अब उन्होंने उसी सिद्धांत के आधार पर लहरों से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए एक कनवर्टर का विकास किया है. डॉ. स्टिग ने वेव एनर्जी कनवर्टर (डब्ल्यूईसी) के विकास के लिए 2009 में कोरपावर ओसियन नाम से एक कंपनी बनायी.

कोरपावर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी पैट्रिक मूलर का दावा है कि डब्ल्यूईसी का बेजोड़ डिजाइन समुद्र की लहरों से ऊर्जा पैदा करने की दिशा में बड़ी उपलब्धि है. लहरों से प्राप्त ऊर्जा स्वच्छ ऊर्जा है और इससे दुनिया की कुल ऊर्जा क्षमता का 10 से 20 प्रतिशत हिस्सा यानी करीब चार अरब मेगावाट तक प्राप्त की जा सकती है. कोरपावर ने 2011 में अपने दो पहले प्रोटोटाइप का विकास किया था.

परंपरागत कनवर्टर की तुलना में  डब्ल्यूईसी के जरिए लहरों से पांच गुना ज्यादा ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है. इसके तहत एक छोटे से उपकरण का इस्तेमाल कर बड़ी मात्रा में ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है. दरअसल लहरों से ऊर्जा हासिल करने की तकनीक में सबसे बड़ी चुनौती ऐसा उपकरण बनाने की है जो न केवल भीषण समुद्री तूफानों को झेल सके बल्कि सस्ते दर पर बिजली भी पैदा कर सके. अब तक जितने कनवर्टर बनाए गए थे वे काफी बड़े और महंगे हैं जिसके कारण उनका व्यावसायीकरण नहीं हो पाया.

कोरपावर किफायती दर पर लहरों से ऊर्जा हासिल करना चाहती है ताकि यह ऊर्जा के दूसरे स्रेतों के साथ मुकाबला कर सके. डब्ल्यूईसी में आठ मीटर व्यास का एक हीविंग बोय सतह पर लहरों के उतार चढ़ाव से ऊर्जा हासिल करता है.

डब्ल्यूईसी एक मूरिंग लाइन के जरिए समुद्र की तलहटी से जुड़ा होता है. बोय और मूरिंग लाइन के बीच एक न्यूमैटिक प्री टेंशन मॉड्यूल होता है जो इस पूरी प्रणाली को हल्का बनाता है और लहरों के साथ सही तालमेल बैठाता है.

लहरों से मिलने वाली बिजली सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा से इस मायने में अलग है कि इसका एक या दो दिन पहले पूर्वानुमान लगाया जा सकता है. साथ ही यह शत-प्रतिशत स्वच्छ ऊर्जा है और इससे कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन नहीं होता है. मूलर का कहना है, स्कॉटलैंड और पुर्तगाल के वैज्ञानिक भी इस परियोजना पर काम कर रहे हैं और 2017 से इसका व्यावसायिक संचालन शुरू होने की उम्मीद है. उन्होंने कहा कि इस तकनीक को मार्केट में लाने के लिए तीन करोड़ डॉलर की जरूरत है.

उन्होंने कहा कि एक गीगावाट क्षमता स्थापित होने के बाद इसकी लागत को दस यूरो प्रति किलोवॉट से कम पर लाया जा सकता है. फिलहाल कंपनी इस परियोजना की शुरूआत पुर्तगाल, फ्रांस और ब्रिटेन से करना चाहती है.

इसके अलावा अमेरिका, कनाडा, दक्षिण अमेरिका, कोरिया और जापान में भी समुद्र की लहरों से ऊर्जा हासिल करने की पर्याप्त संभावनाएं हैं। भारत तीन तरफ से समुद्र से घिरा है और अगर यह प्रयोग सफल हो जाता है तो यह तकनीक भारत के लिए वरदान साबित हो सकती है.



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