दम तोड़ती आकाशगंगाओं के रहस्य पर से उठा पर्दा
Last Updated 15 May 2015 07:05:21 PM IST
खरबों तारों की जन्मस्थली आकाशगंगाओं में से कई के दम तोड़ने के रहस्य का वैज्ञानिकों ने पता लगाया.
दम तोड़ती आकाशगंगाएं |
इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्विद्यालय के खगोल वैज्ञानिकों ने ‘‘कास्मिक र्मडर मिस्ट्री’ के नाम से पहचानी जाने वाली इस घटना के बारे में ताजा शोध में कहा है कि तारों अर्थात गैसीय पिंडों को जन्म देने वाली ये आकाशगंगाएं गैस उत्सर्जन की क्षमता खत्म होते ही दम घुटने से खत्म हो जाती हैं.
ये शोध रिपोर्ट साइंस पत्रिका नेचर के ताजा अंक में प्रकाशित की गई हैं, शोध रिपोर्ट के अनुसार ब्रह्मांड में दो तरह की आकाशगंगाएं पाई जाती हैं, पहली वे जिनमें तारों के निमार्ण के लिए आवश्यक गैस पदार्थ मौजूद होते हैं जबकि दूसरी वे जिनमें इनका अभाव होता है और वह मृत अवस्था में रहती हैं.
वैज्ञानिकों के अनुसार कोई भी आकाशगंगा शुरू से ही मृत अवस्था में नहीं होती है बल्कि खगोलीय प्रक्रिया के तहत इनका अंत होता है, वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसा कई कारणों से हो सकता है, पहला कारण यह है कि कई बड़ी आकाशगंगाएं अपने तीव्र गुरुत्वाकर्षण बल से समीप की छोटी आकाशगंगाओं के सारे गैस भंडारों को सोख लेती हैं और उन्हें निष्प्राण कर देती हैं.
ऐसे में इस तरह की मिलती-जुलती आकाशगंगाएं आपस में जुड़कर एक बेहद गर्म वृत्ताकार खगोलीय संरचना में तब्दील होने के बाद निष्प्राण हो जाती हैं और तारों को जन्म देने की क्षमता खो देती हैं, दूसरा कारण आकाशगंगाओं को ठंडी गैसों की आपूर्ति का रास्ता बंद हो जाना भी है.
ये गैसें नहीं मिल पाने के कारण इनमें तारे बनने की प्रक्रिया शुरू ही नहीं हो पाती है, यह बात साबित करने के लिए खगोल वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड की 26 हजार से अधिक आकाशगंगाओं का विशद अध्ययन करने के बाद अपनी रिपोर्ट तैयार की है, इसमें कहा गया कि तारों के बनने की प्रक्रिया में बड़ी मात्रा में हाइड्रोजन और हीलियम गैसों की आवश्यकता पड़ती है,
निर्माण प्रक्रिया में गैसों का भारी पदार्थो के साथ फ्यूजन होता है, जिन आकाशगंगाओं में यह भारी पदार्थ ज्यादा मात्रा में पाए जाते हैं, वहां हीलियम और हाइड्रोजन गैसों के साथ इनके विलय की प्रक्रिया जटिल हो जाती है, इससे गैसों की मात्रा घटने लगती है और तारों के बनने की प्रक्रिया बाधित हो जाती है.
जिन आकाशगंगाओं में ऐसी धातुएं कम मात्रा में पाई जाती हैं, वहां तारों के बनने की प्रक्रिया अबाध गति से चलती रहती है, हालांकि वैज्ञानिकों का दावा है कि ऐसी हालत में भी आकाशगंगाओं में कुछ गैस बची रहती हैं जिससे तारों का बनना सभंव है लेकिन इसके कोई प्रमाण नहीं मिले हैं.
शोध रिपोर्ट के अनुसार आकाशगंगाओं का मृत हो जाना कुछ चंद दिनों की घटना नहीं होती बल्कि इसमें करीब चार अरब वर्ष लगते हैं, हालांकि कुछ आकाशगंगाओं में तारों का बनना अचानक भी रुक जाता है, ज्यादतर वही आकाशगंगाएं मृत अवस्था में पहुंचती हैं जो सूरज से करीब 100 अरब गुना अधिक भार वाली होती हैं, आकाशगंगाए गैस से बनी खगोलीय संरचनाएं होती हैं, सूरज भी ऐसी ही गैसों से बना हुआ है.
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