भारत के मॉम का मंगल को आखिरी सलाम

Last Updated 24 Mar 2015 07:28:14 PM IST

भारत के मंगलयान को 24 मार्च को छह महीने पूरे हुए, इसी के साथ मंगल मिशन भी आधिकारिक रूप से खत्म हो रहा है.


मॉम का मंगल को आखिरी सलाम

वैसे, मंगलयान अपना काम जारी रखेगा और इसकी भेजी हुई सूचनाओं पर इसरो काम करता रहेगा, भारत ने पहली बार और पहले ही प्रयास में अपने दम पर पिछले साल 24 सितंबर की सुबह मंगलयान को मंगल की कक्षा में स्थापित किया था.

भारत की इस कामयाबी ने स्पेस साइंस के मामले में देश को एक नए मुकाम पर पहुंचा दिया, पूरी दुनिया ने एक सुर में भारत की इस कामयाबी को सराहा था, इस मुहिम पर अन्य देशों के मुकाबले भारत ने करीब एक चौथाई पैसा ही खर्च किया और अमेरिका के मुकाबले 10 गुना कम.
 
इस प्रॉजेक्ट से भारत की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई थी, अभी तक अमेरिका, रूस और यूरोप के कुछ देश (संयुक्त रूप से) ही मंगल की कक्षा में अपने यान भेज पाए हैं, चीन और जापान इस कोशिश में अब तक कामयाब नहीं हो सके हैं, रूस भी अपनी कई असफल कोशिशों के बाद इस मिशन में सफल हो पाया है, अब तक मंगल को जानने के लिए शुरू किए गए दो तिहाई अभियान नाकाम साबित हुए हैं.
 
भारत के मंगल मिशन को सरकार ने 3 अगस्त 2012 को मंजूरी दी थी वैसे, इसके लिए 2011-12 के बजट में ही फंड का प्रावधान कर दिया गया था, मंगलयान और इसको ले जाने वाले रॉकेट का विकास इसरो के साइंटिस्ट्स ने पूरी तरह अपने दम पर किया था, इस अभियान को मार्स ऑर्बिटर मिशन ( मॉम) नाम दिया गया.
 
मंगलयान को पहले अक्टूबर 2013 में छोड़े जाने की योजना थी, लेकिन मौसम खराब होने के कारण इसे टाल दिया गया, फिर इसरो ने पिछले साल 5 नवंबर 2013 को इसे दिन में 2 बजकर 36 मिनट पर छोड़ने का फैसला किया, इसके बाद मंगलयान पिछले साल 24 सितंबर को मंगल की कक्षा में पहुंचा, मंगलयान को इसरो के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से पोलर सैटलाइट लॉन्च वीइकल (पीएसएलवी) सी-25 की मदद से छोड़ा गया, इस वीइकल की लागत 110 करोड़ रुपये से कुछ ज्यादा थी और इसका वजन 1350 किलो था.
 
मंगलयान को सफलतापूर्वक छोड़कर भारत अंतरिक्ष के मामले में अपनी टेक्नॉलजी का लोहा मनवाना चाहता था, इसके साथ ही वह अपनी वैज्ञानिक उत्सुकता को भी शांत करना चाहता था, मंगलयान के जरिए भारत मंगल ग्रह पर जीवन के सूत्र तलाशने के साथ ही वहां के पर्यावरण की जांच करना चाहता था. 
 
वह यह भी पता लगाना चाहता था कि लाल ग्रह पर मीथेन मौजूद है कि नहीं, इसके लिए मंगलयान को करीब 15 किलो वजन के कई अत्याधुनिक उपकरणों से लैस किया गया, इसमें कई पावरफुल कैमरे भी शामिल थे, मंगलयान की कामयाबी से इसरो को कई देशों के सैटलाइट्स छोड़ने के ऑफर मिले हैं.



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