मंगल ग्रह पर क्रेटर के मध्य स्थित पर्वत कैसे बना?

Last Updated 12 Jan 2015 07:44:01 PM IST

मंगल पर 154 किलोमीटर चौड़ा उल्कापात से बना गड्ढा है जिसके बीच में करीब 5 किलोमीटर ऊंचा पहाड़ है.


मंगल पर क्रेटर के मध्य पर्वत कैसे बना?

क्यूरियॉसिटी रोवर वहां से जिस तरह की सूचनाएं दे रहा है वे विश्व वैज्ञानिक बिरादरी को चमत्कृत कर देने के लिए काफी हैं, दो साल पहले जिस स्थान पर यह उतरा था, वहां से आसपास की भौगोलिक स्थिति की तस्वीरें उसी समय से मिलने लगी थीं, खास बात यह हुई कि पृथ्वी से मिल रहे निर्देशों के मुताबिक यह रोवर धीरे-धीरे अपनी जगह से चलकर पहाड़ की जड़ तक पहुंचा और उस पर चढ़ने लगा.

पूरे दो वर्षों की चढ़ाई के बाद वह पहाड़ की चोटी तक जा पहुंचा और इस दौरान क्रेटर और पहाड़ की बनावट के बारे में ऐसी बारीक सूचनाएं भेजीं जो उपग्रहों द्वारा भेजे गए चित्रों से कभी हासिल नहीं की जा सकती थीं, इन सूचनाओं के विस्तृत विश्लेषण का काम वैज्ञानिक समुदाय आने वाले दिनों-वर्षों में करेगा, रोवर से ही आगे मिलने वाली सूचनाएं इस काम में वैज्ञानिकों का मार्गदर्शन करेंगी, लेकिन, अभी तक मिल चुकी सूचनाएं भी कम क्रांतिकारी नहीं हैं.
 
इन सूचनाओं के आधार पर वैज्ञानिकों को लगता है कि करीब साढ़े तीन अरब साल पहले इस क्रेटर का ज्यादातर हिस्सा पानी से भरा रहा होगा, ये पर्वत करोड़ों वर्षों की अवधि के दौरान एक के बाद एक बनी झीलों के रेत और अन्य तलछट के अवशेषों का बना हो सकता है, बाद में आसपास के मैदान में मिट्टी हवा के ज़रिए उड़ गई और इस तरह पांच किलोमीटर ऊंची चोटी अस्तित्व में आई जो आज हमें दिखती है, अगर यह बात सही है तो मंगल के वातावरण के बारे में अब तक बनी इस धारणा पर सवाल उठ जाता है कि इस ठंडे और सूखे ग्रह पर उष्णता और आर्द्रता क्षणिक और स्थानीय बात ही रही होगी, इसका मतलब ये होगा कि दुनिया पहले दो अरब सालों के दौरान उससे कहीं ज्यादा गर्म और नम रही होगी जितना कि पहले माना जाता था, क्यूरियॉसिटी की टीम का कहना है कि प्राचीन मंगल पर इस तरह की नम परिस्थितियों को बरक़रार रखने के लिए ख़ूब बारिश और बर्फ़बारी होती होगी.
 
इससे जुड़ी एक रोचक संभावना ये भी नज़र आती है कि मंगल के धरातल पर कहीं कोई सागर भी रहा होगा, क्यूरियॉसिटी अभियान के वैज्ञानिक डॉ. अश्विन वासावादा का कहना है-‘अगर वहां करोड़ों सालों तक झील रही है, तो पर्यावरणीय नमी के लिए सागर जैसे पानी के स्थायी भंडार का होना जरूरी है.’
 
दशकों से शोधकर्ता अटकलें लगाते रहे हैं कि मंगल ग्रह के शुरुआती इतिहास में उत्तरी मैदानी इलाकों में एक बड़ा सागर अस्तित्व में रहा होगा, बहरहाल हर नई मान्यता अपने साथ सवालों का बवंडर भी लाती है.
 
अगर प्राचीन काल में मंगल की सतह पर इतनी भारी मात्रा में पानी था तो फिर वहां जीवन की संभावना से इनकार कैसे किया जा सकता है? पुरानी मान्यताओं से उलझना, उनमें से बहुतों को गलत साबित करना और इस प्रक्रिया में उपजे नए सवालों की चुनौतियों से जूझना विज्ञान का स्वभाव रहा है, इस बार खास बात सिर्फ यह है कि मनुष्य के भेजे एक दूत ने जिस तेजी से मंगल की दुनिया के राज खोलने शुरू किए हैं, उसे देखते हुए लगता नहीं कि यह लाल ग्रह ज्यादा समय तक हमारे लिए रहस्य का गोला बना रहेगा.
 



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