भारत के मंगल तक के सफर को बयां करती नयी किताब ‘रीचिंग फॉर द स्टार्स : इंडियाज़ जर्नी टू मार्स एंड बियॉण्ड’
किताब ‘रीचिंग फॉर द स्टार्स : इंडियाज़ जर्नी टू मार्स एंड बियॉण्ड’ में अंतरिक्ष से जुड़ी महत्वाकांक्षाओं को बयां किया गया है.
मंगल सफर पर एक किताब |
भारत के महत्वाकांक्षी मंगल अभियान का प्रस्ताव नवंबर 2011 में चीनी अभियान के विफल हो जाने के बाद ही सरकार के पास भेजा गया था लेकिन मंत्रिमंडल की ओर से इसे मंजूरी मिल जाने की खबर छिपाकर रखी गयी ताकि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इसे स्वतंत्रता दिवस के भाषण में सबको बता सकें जबकि इसरो के पूर्व प्रमुख यू आर राव ने मंगल अभियान के बजाय बुध अभियान को तवज्जो दी थी.
ये कुछ ऐसी बातें हैं, जिसका वर्णन भारत की मंगल यात्रा को बयां करने वाली किताब में किया गया है.
पल्लव बाग्ला और उनकी पत्नी सुभद्रा मेनन द्वारा लिखी गई किताब ‘रीचिंग फॉर द स्टार्स: इंडियाज़ जर्नी टू मार्स एंड बियॉण्ड’ में मंगल ऑर्बिटर मिशन (एमओएम) के साथ भारत की अंतरिक्ष से जुड़ी महत्वाकांक्षाओं को बयां किया गया है.
बाग्ला ने कहा कि उन्हें भारत के मंगल अभियान को करीब से देखने का दुर्लभ अवसर मिला.
इसरो के कभी हार नहीं मानने वाले रवैये की बानगी पेश करने के साथ-साथ इस किताब में भारत की अंतरिक्ष क्षेत्र से जुड़ी महत्वाकांक्षाओं का समग्र चित्रण एक पत्रकार के नजरिए से पेश किया गया है. इसमें लेखक ने असल दृश्य के पीछे की कहानी, अंतरिक्ष अभियानों की भू-राजनीति और एशियाई देशों के बीच की अंतरिक्ष दौड़ जैसे विषयों का वर्णन किया है.
किताब में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के पहले अंर्तग्रही अभियान यानी मंगल अभियान की शुरूआत की कहानी दर्ज है. इस अभियान के तहत भारत ने एक मानवरहित अंतरिक्षयान भेजा है, जिसे लाल ग्रह की दीर्घवृत्ताकार कक्षा में घूमना है.
इसके अलावा इसमें चंद्रयान 1 समेत पिछले अंतरिक्ष अभियानों के दौरान की स्थितियों का भी वर्णन है। किताब के अनुसार, इस अभियान में ‘1’ खुद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जोड़ा था.
भारत के पिछले, मौजूदा और भविष्य के संभावित अंतरिक्ष कार्यक्र मों को जोड़ते हुए यह किताब अंतरिक्ष अभियानों में इसरो के कायरें का खूबसूरत चित्र संग्रह भी पेश करती है.
कभी खत्म न होने वाला जुनून और कड़ी मेहनत ही है, जो इसरो को अन्य सरकारी संगठनों से अलग बनाती है. इसरो की इस खासियत का वर्णन इस किताब में है. किताब में बताया गया है कि एमओएम परियोजना के निदेशक एस अरूणन इस अभियान के 15 माह के दौरान हर रात इसरो के उपग्रह केंद्र में ही सोए थे.
हस्यों को सुलझाने की इसरो की ललक का कोई अंत नहीं है क्योंकि दुनिया के लिए रहस्य बने हुए सूर्य की गुत्थियों को भी सुलझाने की भी इसकी योजना है.
इसरो प्रमुख राधाकृष्णन भी कहते हैं, ‘एमओएम इसका अंत नहीं है. यह तो शुरूआत भर है.’ किताब में भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के भविष्य के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय अन्वेषणों और वैश्विक योजनाओं पर भी अध्याय हैं.
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