अब धूमकेतु को साधने की तैयारी की जा रही है

Last Updated 11 Nov 2014 02:47:34 PM IST

यह पहला मौका है जब किसी धूमकेतु की सतह की खाक छानने के लिए पृथ्वी से 51 करोड़ किमी दूर वहां रोबोट उतारा है.


अब धूमकेतु को साधने की तैयारी

धरती के एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा और सौरमंडल के कई ग्रहों पर सफलतापूर्वक मिशन भेजने के बाद इंसान की नजर अब खनिजों और गैस से भरे धूमकेतुओं पर टिक गई है और अब इस दिशा में पहला प्रयास किया जाएगा. 

धूमकेतु के चक्कर लगा रहा यूरोप का ‘रोसेटा’ यान फिली रोबोट को अपने लक्ष्य की तरफ भेजेगा, यह पहला मौका है जब किसी धूमकेतु की सतह की खाक छानने के लिए वहां रोबोट उतारा है. 
 
यह धूमकेतु पृथ्वी से 51 करोड़ किलोमीटर दूर है और वहां से रेडियो संकेतों के पृथ्वी पर पहुंचने में 30 मिनट का समय लगता है. 
 
इस यान को वर्ष 2004 में प्रक्षेपित किया गया था और 6.4 अरब किमी की यात्रा करने के बाद वह इसी साल अगस्त में ‘67पी’ की कक्षा में पहुंचा था. 
 
तीन महीने के दौरान धूमकेतु का चक्कर लगाते हुए ‘रोसेटा’ ने काफी आंकड़े जुटाए हैं और इन्हीं के आधार पर अब वह फिली रोबोट को उतारने की तैयारी में है. 
 
‘रोसेटा’ के अगले साल अगस्त तक ‘67पी’ के साथ रहने की संभावना है जब यह धूमकेतु सूर्य के सबसे करीब होगा. 
 
‘रोसेटा’ जहां कक्षा में रहकर इस धूमकेतु का अध्ययन करेगा वहीं फिली इसकी सतह को खंगालेगा. 
 
फिली नाम मिस्र में नील नदी के एक द्वीप में पाए गए पत्थर के स्तंभ के नाम पर रखा गया है. 
 
उपग्रह पर लगे उपकरणों से मिले आंकड़ों के आधार पर पता चला है कि ‘67पी’ की गंध सड़े अंडे की तरह है. 
 
इस धूमकेतु की खोज क्लिम इवानोविच चुरयुमोव और स्वेतलाना इवानोवा ने 1969 में की थी. 
 
गुरू श्रेणी का यह धूमकेतु सौरमंडल के आंतरिक हिस्से में स्थित है और इसे सूर्य का एक चक्कर पूरा करने में 6.45 वर्ष लगते हैं. 
 
इसका द्रव्यमान 10 अरब टन और आकार 25 घन किमी है, धूमकेतु सौरमंडलीय पिंड है जो पत्थर, धूल, बर्फ और गैस के बने हुए छोटे- छोटे खंड होते हैं. 
 
ये ग्रहों के समान सूर्य की परिक्रमा करते हैं, अधिकांश धूमकेतु बर्फ, कार्बन डाई ऑक्साइड, मीथेन, अमोनिया, सिलिकेट और कार्बनिक मिश्रण के बने होते हैं.



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