उत्तराखंड में कांग्रेस के बागी विधायकों को कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल की किस्मत अयोग्य ठहराए गए विधायकों की ओर से उनकी कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिका पर शीर्ष अदालत के फैसले पर निर्भर करेगी.
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो) |
यह बात न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन की पीठ ने अपने आदेश में कही. पीठ ने कांग्रेस के बागी विधायकों को कोई भी अंतरिम राहत देने से मना कर दिया. विधायकों ने उन्हें अयोग्य ठहराए जाने के फैसले पर रोक और विधानसभा के सत्र में हिस्सा लेने की अनुमति मांगी थी. विधानसभा का सत्र 21 जुलाई से देहरादून में शुरू हो रहा है.
विधानसभा अध्यक्ष को हटाने का प्रस्ताव तत्कालीन नौ बागी कांग्रेसी विधायकों ने 18 मार्च को पेश किया था और उसके एक दिन बाद विधानसभा अध्यक्ष ने उन्हें अयोग्य ठहराने का नोटिस दिया.
पीठ ने यह भी साफ कर दिया कि उसकी मंशा विधानसभा के कामकाज में हस्तक्षेप करने की नहीं है. पीठ ने कहा कि अगर प्रस्ताव पर सदन विचार करता है और मतदान करता है तो उसकी किस्मत बागियों की याचिका पर फैसले पर निर्भर करेगी. बागी विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष द्वारा उन्हें अयोग्य ठहराए जाने के फैसले को नैनीताल उच्च न्यायालय द्वारा बरकरार रखने के फैसले के खिलाफ अपील दायर की है.
न्यायालय ने कहा, \'\'हम यह कहने को तैयार हैं कि अगर याचिकाकर्ताओं (बागी विधायकों) द्वारा विधानसभा अध्यक्ष को हटाने के लिए पेश किये गए प्रस्ताव पर उत्तराखंड विधानसभा किसी भी समय विचार करती है तो वह एसएलपी के अंतिम फैसले पर निर्भर करेगा और क्षेत्राधिकार के मुद्दे समेत याचिका में उठाए गए सारे मुद्दे विचार के लिए खुले हुए हैं.\'\'
कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन समेत बागियों ने एक याचिका दायर करके अरूणाचल प्रदेश मामले में हालिया ऐतिहासिक फैसले पर भरोसा करते हुए उन्हें अयोग्य ठहराने के विधानसभा अध्यक्ष के फैसले पर रोक लगाने की मांग की. उस फैसले में कहा गया था कि हटाने के लिए प्रस्ताव का सामना कर रहे विधानसभा अध्यक्ष, प्रस्ताव का हिस्सा रहे विधायकों को अयोग्य नहीं ठहरा सकते.
उच्चतम न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के पैरा 175 का उल्लेख करते हुए बागी विधायकों की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता सी ए सुंदरम ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 179 (सी) उस विधानसभा अध्यक्ष को सदन के किसी भी सदस्य को अयोग्य ठहराने का अधिकार नहीं देता है, जिसके खिलाफ हटाए जाने का प्रस्ताव लंबित है.
सुंदरम ने अरूणाचल मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले के प्रासंगिक हिस्से का भी उल्लेख किया.
न्यायमूर्ति जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा था, \'\'हम संतुष्ट हैं, कि \'\'विधानसभा के तत्कालीन सभी सदस्यों के बहुमत से पारित प्रस्ताव\'\' विधानसभा अध्यक्ष को 10 वीं अनुसूची के तहत अयोग्यता की कार्यवाही पर आगे बढ़ने से रोकेगा क्योंकि वह एक या अधिक विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने के बाद \'तत्कालीन सभी सदस्यों\' के प्रभाव को खत्म कर देगा.\'\'
कुंजवाल का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने मामले में विधानसभा अध्यक्ष की शक्तियों को लेकर अरूणाचल प्रदेश मामले में फैसले के उस हिस्से पर गंभीर आपत्ति जताई जिसमें विधानसभा अध्यक्ष को हटाए जाने को लेकर लंबित प्रस्ताव के बारे में जिक्र है. सिब्बल ने कहा, \'\'ऐसा कैसे हो सकता है. मैं भावनात्मक तौर पर आपके (न्यायाधीश) साथ हूं लेकिन तार्किक रूप से आपके साथ नहीं हूं.\'\'
उन्होंने कहा कि इस तरह के मामलों में राजनैतिक कार्रवाई के जरिए फैसला सुनाने की विधानसभा अध्यक्ष की शक्ति नहीं छीनी जा सकती और कोई भी प्रस्ताव पेश कर सकता है और विधानसभा अध्यक्ष की न्यायिक शक्ति को कमजोर कर सकता है. सिब्बल ने कहा कि अरूणाचल प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष नबाम रेबिया ने नयी याचिका दायर करके फैसले की समीक्षा करने की मांग की है.
सिब्बल ने कहा, \'\'मामले में उस तरह से कभी दलील नहीं दी गई. संविधान के अनुच्छेद 179 (सी) में \'विधानसभा के तत्कालीन सभी सदस्य: का मतलब अयोग्य विधायकों या खाली सीटों को शामिल करना नहीं है.\'\'
उन्होंने तब कहा कि क्या जो विधायक भाजपा में शामिल हो गए हैं उन्हें कांग्रेस विधायक दल के हिस्से के तौर पर विधानसभा में हिस्सा लेने की अनुमति दी जा सकती है.
सिब्बल ने कहा, \'\'विधानसभा अध्यक्ष को हटाने का प्रस्ताव राजनैतिक प्रक्रि या है. आपने राजनैतिक प्रक्रि या को न्यायिक प्रक्रि या के ऊपर रखा है. ऐसा नहीं किया जा सकता है.\'\'
उन्होंने कहा, \'\'विधानसभा अध्यक्ष को :अरूणाचल प्रदेश के फैसले के जरिए अक्षम बना दिया गया है. विधानसभा उपाध्यक्ष संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत कार्रवाई नहीं कर सकता. शिकायतकर्ता कहां जाएगा.\'\'
सुनवाई के दौरान सिब्बल ने कहा कि अयोग्य ठहराए गए विधायकों की मौजूदा याचिका को संविधान पीठ के पास भेजा जाए क्योंकि विधानसभा अध्यक्ष की स्थिति के साथ गंभीर रूप से समझौता किया गया है. विधानसभा अध्यक्ष को दसवीं अनुसूची के तहत शक्तियां हासिल हैं.
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