उत्तराखंड में दावाग्नि पर राज्य और केन्द्र से जवाब तलब

Last Updated 03 May 2016 01:33:26 PM IST

उत्तराखंड में वनाग्नि से परेशान नौकरशाही को नैनीताल उच्च न्यायालय ने खरी-खरी सुनाने के साथ ही सोमवार को दाखिल की गई रिपोर्ट पर गहरी नाराजगी दिखा दी है।


(फाइल फोटो)

इसके साथ ही शासन से छह मई को विस्तृत रिपोर्ट तलब की है. इसमें 2005 की राज्य आपदा प्रबंधन नीति तथा केंद्र की नीति का अंतर बताने के साथ ही इसरो की यूनिट तथा आग बुझाने में कार्मिकों को दिया जा रहा मेहनताना पर भी सवाल किए हैं.

इन दिनों उत्तराखंड राजनीतिक आग के साथ ही वनाग्नि से जूझ रहा है. लगभग 40 फीसदी जंगल आग के हवाले हो गए हैं. मीडिया रिपोटरे पर अब नैनीताल उच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान ले लिया है.

पूर्व में मुख्य न्यायाधीश केएम जोसफ एवं न्यायमूर्ति वीके बिष्ट की संयुक्त खंडपीठ सोमवार को जंगलों में लगी आग का पूरा विवरण न्यायालय में प्रस्तुत करने के लिए मुख्य वन संरक्षक एवं प्रमुख सचिव वन को निर्देश जारी किए थे.

रिपोर्ट पेश भी की गई. लेकिन संयुक्त पीठ ने नौकरशाही की इस रिपोर्ट पर असंतुष्टि जाहिर करते हुए कई प्रमुख सवालों का उत्तर मांगा है. संयुक्त खंडपीठ ने शासन से कहा है कि इसरो तथा नासा इस तरह की आपदा पर नजर रखते हैं. नासा की बेबसाइट तो आग प्रभावित इलाकों को अपडेट करती है.

न्यायालय ने पूछा है कि नासा की बेबसाइट को अपडेट करने की कोई यूनिट उत्तराखंड में अभी तक क्यों नहीं बनाई गई है. यदि बनाई गई है तो इस पर काम क्या हुआ है? इसके साथ ही यह भी सवाल किया है कि उत्तराखंड में 2005 में आपदा प्रबंधन नीति तैयार की थी. इस नीति तथा केंद्र की आपदा प्रबंधन नीति में क्या अंतर है.

इस अंतर की शासन ने कभी समीक्षा की या नहीं? न्यायालय ने शासन से यह भी सवाल किया कि आग बुझाने वालों को केवल 162 रपए प्रतिदिन क्यों दिए जा रहे हैं? यह किसने किस तरह से तय किया? न्यायालय ने यह भी सवाल किया है कि अभी तक आग से कितने पेड़ जले हैं तथा कितना इलाका प्रभावित है? इसकी विस्तृत रिपोर्ट दी जाए.

न्यायालय के इस ताजा आदेश के बाद शासन में हड़कंप मच गया है.



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment