नारी निकेतन मामले की लीपापोती मंजूर नहीं : खंडूड़ी

Last Updated 27 Nov 2015 06:11:32 PM IST

सरकार नारी निकेतन मामले में ढुलमुल रवैया अपनाये हुई है. वहां के बारे में जो भी घटनाएं उजागर हुई हैं उससे पूरा प्रदेश अचंभित है.


नारी निकेतन मामले की लीपापोती मंजूर नहीं : खंडूड़ी

लिहाजा सरकार को निष्पक्ष रूप से मामले की पड़ताल करानी चाहिए. साथ ही साथ भाजपा शासन में बनायी गयी एमबीबीएस में भर्ती प्रक्रिया को फिर से क्रियान्वित करे ताकि प्रदेश में चिकित्सकों की कमी दूर की जा सके. सांसद बीसी खंडूड़ी ने यह बात कही.

खंडूड़ी ने देहरादून नारी निकेतन में संवासिनियों के यौन शोषण मामले में राज्य सरकार और राज्य महिला आयोग की भूमिका की घोर निंदा की है. गढ़वाल सांसद ने कहा कि नारी निकेतन में रह रही संवासिनियों को राज्य सरकार से एवं सामाजिक रूप से सुरक्षा की अधिक जरूरत होती है. उनके साथ ऐसा घृणित कार्य होता रहा और राज्य सरकार शुरू में निष्पक्ष जांच कराने से बचती रही. दोषियों को सजा दिलाने के बजाय मीडिया में मामला आने के बाद उस पर लीपापोती का काम करती रही है. पूरे मामले में राज्य महिला आयोग की चुप्पी संदेह पैदा कर रही है.

उन्होंने कहा कि इस मामले को राष्ट्रीय महिला आयोग के समक्ष पेश करेंगे. खंडूड़ी ने पीपीपी मोड के अस्पतालों में राज्य सरकार द्वारा बिना चिकित्सकों के वेतन का भुगतान किया जा रहा है पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए इसे राज्य के लिये शर्मनाक घटना करार दिया.

पूर्व सीएम खंडूड़ी ने कहा कि उनकी सरकार द्वारा पूर्व में पहाड़ी क्षेत्रों में चिकित्सकों की कमी को देखते हुए और उसे दूर करने के लिए पूरे देश में सबसे सस्ती चिकित्सा शिक्षा की नीति बनाई थी. जिसमें मात्र 15 हजार रुपये की वार्षिक शुल्क के द्वारा एमबीबीएस कोर्स किया जा सकता है, इतना ही नहीं बीपीएल परिवारों के बच्चों के लिए फीस काफी कम रखी गयी.

 जिनके पास यह फीस देने के लिए भी पैसे नहीं है उनको सरकार अपनी गारंटी पर लोन दिलाकर फीस भरेगी. एमबीबीएस की डिग्री लेने के बाद जब वह छात्र नौकरी में आयेंगे तो उनकी वेतन में से लोन की किस्त ली जायेगी. इस चिकित्सा शिक्षा नीति में यह शर्त भी जोड़ी गई कि इस नीति के तहत जो भी एमबीबीएस की पढ़ाई करेगा उसे यह बांड भरना पड़ेगा कि उसे एमबीबीएस की डिग्री के बाद 5 वर्ष पहाड़ों अर्थात दुर्गम क्षेत्रों में अपना योगदान अनिवार्य रूप से देना होगा अन्यथा उसकी एमबीबीएस की डिग्री निरस्त कर दी जायेगी.

इस नीति से जहां एक ओर उत्तराखंड के गरीब परिवारों के योग्य बच्चों को नाम मात्र के वार्षिक शुल्क में एमबीबीएस की उपाधि प्राप्त होगी बल्कि प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में भी चिकित्सकों की कमी भी दूर होगी. परन्तु वर्तमान की कांग्रेस सरकार द्वारा इस नीति को शिथिल कर दिया जिसका परिणाम आज राज्य की जनता को भुगतना पड़ रहा है.



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