नहीं रहे कवि डॉ. वीरेन डंगवाल

Last Updated 29 Sep 2015 06:27:28 AM IST

हिंदी की दुनिया के एक संवेदनशील कवि वीरेन डंगवाल का सोमवार सुबह चार बजे बरेली के एक अस्पताल में निधन हो गया.


संवेदनशील कवि वीरेन डंगवाल

वह करीब चार-पांच दिन से वहां भर्ती थे. मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कवि और साहित्यकार डॉ. वीरेन डंगवाल के निधन पर शोक जताया है.

साहित्य अकादमी सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित वीरेन डंगवाल अपनी शक्तिशाली कविताओं के साथ-साथ अपनी जनपक्षधरता, फक्कड़पन और यारबाश व्यक्तित्व के चलते बेहद लोकप्रिय थे. उनके निधन से साहित्य जगत में गहरा दुख है. वीरेन डंगवाल के जाने से हिंदी कविता में एक बड़ा शून्य पैदा हुआ है. देश के जाने माने कवि व पत्रकार वीरेन डंगवाल का परिवार मूल रूप से पौड़ी जिले के कमांद गांव था लेकिन वीरेन डंगवाल का परिवार कुछ पीढ़ियों से टिहरी गढ़वाल के कीर्तिनगर में बस गया था. उनके पिता रघुनंदन प्रसाद डंगवाल न्यायाधीश थे. पांच अगस्त 1947 को कीर्तिनगर, टिहरी गढ़वाल में जन्मे वीरेन डंगवाल की कर्मभूमि बरेली रही. वह वहां के महाविद्याल में हिंदी के शिक्षक भी रहे.

वीरेन डंगवाल एक ऐसे कवि थे, जिन्होंने जिंदगी को उसकी पूरी लय के  साथ जिया. पिछले कुछ समय से वे मुंह के कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से जूझते रहे थे. राम सिंह कविता से कविता जगत में मजबूत पहचान बनाने वाले वीरेन डंगवाल के तीन कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं. इसी दुनिया में, दुष्चक्र में सृष्टा और अंत में स्याही ताल. बीमारी के दिनों में भी उनका सृजन कर्म जारी रहा और उनकी कई कविताएं प्रकाशित भी हुई.

दिल्ली में जब भी संभव हुआ, वह धरना-प्रदर्शन, कविता पाठ, सांस्कृतिकआयोजनों में शामिल होते रहे और अपनी धीमी ही सही लेकिन मजबूत आवाज में साहित्य की दुनिया में अपना योगदान देते रहे. उनका फक्कड़ स्वभाव उनकी रचनाओं में भी साफ छलकता है.

उन्होंने कुछ बेहद दुर्लभ अनुवाद भी किए, जिसमें पाब्लो नेरूदा, बर्तोल्त ब्रेख्त, वास्को पोपा और नाजिम हिकमत की रचनाओं के तर्जुमे खासे चर्चित हुए. वीरेन डंगवाल की कविताओं का कई भाषाओं में अनुवाद भी प्रकाशित हुआ. उन्होंने उच्च स्तरीय संस्मरण भी लिखे, जिसमें शमशेर बहादुर सिंह, चंद्रकांत देवताले पर उनके आलेखों की गूंज रही. वीरेन जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे. साहित्य अकादमी पुरस्कार (2004)  प्राप्त वीरेन डंगवाल को रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार (1992), श्रीकान्त वर्मा स्मृति पुरस्कार (1994), शमशेर सम्मान (2002),  सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार भी मिल चुके हैं.



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