उत्तराखंड में आपदा राहत घोटाले पर पर्दा डालने की तैयारी
उत्तराखंड शासन ने सूचनाधिकार से आम हुए आपदा राहत घोटाले पर परदा डालने की तैयारी में है.
सूचनाधिकार से सामने आया उत्तराखंड राहत घोटाला (फाइल फोटो) |
सूत्रों की मानें तो इस मामले को शासन सूचनाधिकार के तहत गलत सूचनाएं देने के मामले के तौर पर पेश कर सूचना देने वाले लोक सूचनाधिकारियों के मत्थे मढ़ सकता है.
अब शासन गलत सूचनाएं मुहैया कराने के लिए कुछ लोक सूचनाधिकारियों यानी निचले स्तर के अधिकारियों कर्मचारियों पर गाज गिराकर आपदा के दाग मिटाने की कोशिश कर सकता है.
सूत्रों का कहना है कि मुख्य सचिव ने आपदा ग्रस्त जिलों के जिलाधिकारियों से मिली रिपोर्ट की पड़ताल के लिए जिस अनौपचारिक समिति का गठन किया था, उसने जो रिपोर्ट अब तक तैयार की है उसमें कहा गया है कि आपदा के दौरान अनियमितता नाम मात्र की ही हुई है.
पिछले दिनों सूचना आयोग में आए एक मामले से जून 2013 की आपदा के बाद राहत कार्य और मरम्मत व पुनर्निर्माण कायरे में भारी अनियमितताएं सामने आई थीं. राज्य सूचना आयोग ने इस मामले में सूचना आवेदक भूपेंद्र कुमार के हवाले से गंभीर टिप्पणी की थी कि अधिकारी-कर्मचारी आपदा पीड़ितों की मदद करने गए थे या पीड़ित लोगों की लाशों पर पिकनिक मनाने गए थे.
यही नहीं आयोग ने सरकार से मामले की सीबीआई या उच्च स्तरीय जांच की सिफारिश की थी. इसके बाद यह प्रदेश का बड़ा सियासी मुद्दा भी बन गया है. इस मुद्दे पर भाजपा अब तक सरकार को घेरने की कोशिश में है.
बहरहाल मामला खुलने के बाद मुख्यमंत्री हरीश रावत ने मुख्य सचिव को मामले की जांच के आदेश दिए थे, जिसके बाद मुख्य सचिव एन. रविशंकर ने आपदा प्रभावित पांच जिलों उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, चमोली, पिथौरागढ़ और बागेश्वर के जिलाधिकारियों से रिपोर्ट तलब की.
रिपोर्ट आने के बाद मुख्य सचिव जिलों से मिली रिपोटरे की जांच के लिए चार सचिवों की एक अनौपचारिक समिति गठित कर दी है. इस समिति में सचिव पर्यटन उमाकांत पंवार, सचिव (वित्त) भास्करानंद, सचिव लोनिवि अमित सिंह नेगी व सचिव आपदा प्रबंधन मीनाक्षी सुंदरम को शामिल किया गया था.
उपसचिव (आपदा प्रबंधन) संतोष बडोनी को जांच समिति के सदस्य सचिव बनाने की बात थी लेकिन इसका आदेश अब तक जारी नहीं हुआ. आपदा घोटाले की जांच आपदा प्रबंधन विभाग से जुड़े अधिकारियों को ही सौंपने के बाद यह सवाल उठने लगे थे कि विभागीय अधिकारी अपने विभाग के खिलाफ जांच कैसे कर सकते हैं.
बहरहाल मुख्य सचिव ने इस अनौपचारिक समिति या अफसरों के समूह को पांचों जिलों से भेजी गई 100 पेजों से ज्यादा की रिपोटरे का अध्ययन कर 25 जून तक एक ठोस संक्षिप्त ब्योरा बनाने को कहा था.
सूत्रों के मुताबिक अब तक जो संक्षिप्त ब्योरा तैयार हुआ है, उसमें नाममात्र की अनियमितितता पाई गई है. यही नहीं यह भी कहा गया है कि मामले ने लोक सूचनाधिकारियों द्वारा गलत दस्तावेज देने के कारण तूल पकड़ा.
मसलन ईधन की रसीद में जिस वाहन का नंबर था एमबी में वह नहीं बल्कि सही नंबर था. इसी तरह की अन्य गड़बड़ियों को लोक सूचनाधिकारी की गलती माना गया है और और कहा गया है कि आपदा के दौरान एक फीसद से कम अनियमिततता हुई.
दशासन मामले को गलत सूचना देने के मामले के रूप में पेश कर लोक सूचनाधिकारियों के मत्थे मढ़ सकता है लोक सूचनाधिकारियों यानी निचले स्तर के अफसर-कर्मियों पर गाज गिराकर आपदा के दाग मिटाने की कोशिश संभव है.
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