हाईकोर्ट को गुमराह कर रही है उत्तराखंड सरकार

Last Updated 27 Mar 2015 12:49:37 PM IST

जेलों में बंद बच्चों के मामले में उत्तराखंड सरकार हाईकोर्ट को गुमराह कर रही है.


हाईकोर्ट को गुमराह कर रही सरकार (फाइल फोटो)

सरकार ने गुरुवार को नैनीताल हाईकोर्ट में पेश अपने हलफनामे में कहा है कि प्रदेश के जेलों में केवल एक ही बच्चा कैद है, जबकि राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की 2013-14 की वार्षिक रिपोर्ट में साफ है कि प्रदेश की जेलों में 68 बालकैदी हैं. ये वे बच्चे हैं, जिनकी अपराध के वक्त उम्र 18 वर्ष से कम थी, यानी उनके मामलों को जेजे एक्ट के तहत किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष पेश किया जाना चाहिए था, मगर उन्हें सामान्य बालिगों की तरह जेलों में डाल दिया गया.

नैनीताल हाईकोर्ट ने एक अंग्रेजी अखबार में हाल में प्रदेश की जेलों में कैद बच्चों पर छपी खबर का संज्ञान लेते हुए प्रदेश सरकार से जलाव तलब किया था.

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 11 मई 2012 को अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि जेलों में वयस्क कैदियों के साथ किशोरों को न रखा जाए. किशोरों की हर स्तर पर सुनवाई होनी चाहिए और उनके अधिकारों का संरक्षण होना चाहिए.

दिल्ली उच्च न्यायालय के इस फैसलों को ध्यान में रखते हुए उत्तराखंड विधिक सेवा प्राधिकरण ने 27 जुलाई 2013 को सभी जिला जजों व जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों के अध्यक्षों को राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के साथ मिलकर सभी जेलों का संयुक्त निरीक्षण करने को कहा और यह पता लगाने को कहा कि प्रदेश में कहीं वयस्क कैदियों के साथ किशोर या अवयस्क कैदियों को तो नहीं रखा गया है.

राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष अजय सेतिया ने सभी संबंधित जिलों केजिला न्यायाधीशों के साथ राज्यभर की जेलों व उपजेलों का निरीक्षण किया. निरीक्षण में पता चला कि प्रदेश में 68 बाल कैदी साधरण वयस्क जेलों में कैद थे.

राष्ट्रीय सहारा ने भी बाल आयोग की ओर से प्रदेश के जेलों के निरीक्षण में बाल कैदियों पाए जाने की खबरें 2013 में ही खूब प्रमुखता से प्रकाशित की थीं. बहरहाल राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने अपने निरीक्षण की पूरी रिपोर्ट 14 अक्टूबर 2013 को राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को भेज दी थी.

जांच रिपोर्ट के इन तथ्यों को आयोग ने अपनी सालाना रिपोर्ट में भी शामिल किया और सितंबर 2014 में ही 2013-14 की सालाना रिपोर्ट राज्यपाल व सरकार को सौंप दी थी मगर यह रिपोर्ट अबतक विधानसभा के पटल पर नहीं रखी जा सकी है.



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