केदारनाथ आपदा के 19 माह बाद भी हालात जस के तस
केदारनाथ आपदा को लगभग 19 माह से भी अधिक समय हो गया है, मगर आपदाग्रस्त इलाकों में हालात नहीं बदले हैं.
रुद्रप्रयाग : चन्द्रापुरी में लगाई गई ट्राली. |
चंद्रापुरी में ट्राली खींचते पांच साल के तूल बहादुर का एक हाथ कटे पांच माह बीत चुके हैं, मगर प्रशासन ने न तो मासूम की सुध ली है और न ही चंद्रापुरी में झूला पुल बनाने की जहमत उठाई है. इस कारण कड़ाके की ठंड में भी बच्चे ट्राली की रस्सियां खींचने को विवश हैं.
यहां आए दिन लोग व बच्चे ट्राली से आवाजाही करते समय हादसों के शिकार हो रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि यहां फिर तूल बहादुर जैसा कोई और हादसा हो सकता है. केदारनाथ आपदा के दौरान मंदाकिनी व काली गंगा नदियों पर बने एक दर्जन से भी अधिक झूलापुल बह गये थे.
इसके बाद केदार व कालीमठ घाटी के दर्जनों गांव सड़क मार्ग से कट गये. विजयनगर, चंद्रापुरी में प्रशासन व गैर सरकारी संगठनों ने तो ट्रालियां लगा दीं, मगर इन ट्रालियों को रस्सियों के सहारे खींचा जाता है. गत 19 माह में प्रशासन ने ग्रामीणों के आंदोलनों के बावजूद ट्रालियों की वैकल्पिक व्यवस्था नहीं कर पाई है.
इस कारण मंदाकिनी व कालीगंगा के दूसरी ओर रहने वाले लोगों को ट्रालियों पर ही आश्रित रहना पड़ रहा है. मासूम तूल बहादुर का जीवन हुआ बदरंग पिछले वर्ष 13 सितम्बर को चंद्रापुरी में पांच वर्षीय तूल बहादुर के साथ हुई दर्दनाक घटना के बाद भी शासन-प्रशासन ने पुल निर्माण की दिशा में कोई पहल नहीं की है. इस हादसे में तूल बहादुर का एक हाथ कट गया था, जबकि दूसरे हाथ की भी तीन अंगुलियां ट्राली की चपेट में आकर कट गई थीं. मासूम तूल के चाचा धन बहादुर का कहना है कि शासन-प्रशासन की ओर से तूल को मात्र 75 हजार रुपये की मदद मिली है. यह मदद भी लोक निर्माण विभाग ऊखीमठ ने दी.
तूल बहादुर अब पूर्ण रूप से दूसरे पर निर्भर हो गया है. जब तूल के साथ यह हादसा हुआ था तो वह राजकीय प्राथमिक विद्यालय चंद्रापुरी में कक्षा एक का छात्र था, मगर हादसे के बाद तूल बहादुर की पढ़ाई भी रुक गई है. मुख्यमंत्री हरीश रावत भी बेस चिकित्सालय श्रीकोट में मासूम से मिलने गये थे और मदद का आासन दिया था, मगर आज तक उसकी किसी प्रकार से मदद नहीं हो पाई है.
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