उत्तराखंड के लिए संजीवनी साबित होगी शीतकालीन यात्रा
सर्दियों में चारधाम के शीतकालीन पड़ावों की यात्रा का सरकारी मसौदा पहाड़ों के लिए वरदान साबित हो सकता है.
संजीवनी साबित होगी शीतकालीन यात्रा (फाइल फोटो) |
शीतकालीन गद्दीस्थलों के दर्शनों की यह अनूठी पहल प्रदेश के तीर्थाटन को बढ़ावा देने में सहायक तो होगी ही, साथ ही बीते वर्ष आपदा से क्षत-विक्षत हुए उत्तराखंड के जख्मों को भरने में संजीवनी की भूमिका अदा कर सकती है.
प्रदेश के चारधामों की शीतकालीन यात्रा को लेकर प्रदेश सरकार की सहमति यहां के तीर्थाटन के विकास के लिए उपयोगी हो सकती है. अब तक गंगोत्री, यमुनोत्री, बदरीनाथ व केदारनाथ की यात्रा को लेकर केवल ग्रीष्मकाल में ही देसी-विदेशी यात्री उत्तराखंड पहुंचते थे.
शीतकाल में उच्च हिमालय में इन धामों के कपाट बंद होते ही तीर्थयात्री भी पहाड़ चढ़ना बंद कर देते थे. जिसका असर यात्रा मागरे के पर्यटन व विभिन्न व्यवसायों पर साफ दिखाई देता है. जबकि हरिद्वार व ऋ षिकेश तक देसी-विदेशी यात्रियों की चहलकदमी वर्षभर बनी रहती है. जो कि कपाट बंद होने के चलते पहाड़ों का रुख नहीं कर पाते.
ऐसा नहीं कि सरकार ने शीतकालीन यात्रा को लेकर पहली बार कदम उठाया है.
इससे पूर्व वर्ष 2010 में भी धामों के कपाट बंद होने के बाद शीतकालीन पड़ावों तक यात्रा शुरू करने की कोशिश की गई. मगर आधी-अधूरी तैयारियों के साथ शुरू हुई इस यात्रा को अपेक्षित लाभ नहीं मिल सका. नतीजतन 2011-12 में इसके लिए दोबारा प्रयास ही नहीं किए गये. यही नहीं राज्य बनने से पूर्व उत्तर प्रदेश के दौर में भी पूर्व काबिना मंत्री व बदरी- केदार विधानसभा के विधायक केदार सिंह फोनिया ने शीतकाल में चारधाम यात्रा शुरू करने की बात कही थी.
हालांकि उन्होंने शीतकालीन गद्दीस्थलों की यात्रा के इतर मुख्य धामों की यात्रा चलाने पर जोर दिया था. मगर सरकारी स्तर से कोई प्रयास न होने पर यात्रा शुरू नहीं हो पाई और शीतकालीन यात्रा शुरू करने की कवायद ठंडे बस्ते में चली गई. अब जब गत वर्ष से चारधाम यात्रा पर आपदा का ग्रहण लगा तो शीतकालीन यात्रा के बारे में फिर से प्रयास तेज हुए हैं.
सरकार ने यात्रा शुरू करने के बारे जिस तरह से साहस दिखाया है, उसे मुकाम तक पहुंचाने लिए कोशिशें भी उसके अनुरूप धरातल पर होंगी, यह देखना दिलचस्प होगा.
जाम की समस्या रहेगी कम सर्दियों में चारधाम यात्रा मार्ग क्षतिग्रस्त होने की संभावनाएं भी कम हैं. जिससे यात्रा के सुचारु संचालन में मदद मिल सकेगी. ग्रीष्मकालीन यात्रा में चारोंधामों को जोड़ने वाले मार्ग बारिश के चलते विभिन्न स्थानों पर अक्सर क्षतिग्रस्त रहते हैं. जिस कारण यात्रा प्रभावित रहती है. बदहाल यात्रा मागरे में जाम की स्थिति से परेशान यात्रियों को भारी दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं लेकिन शीतकालीन यात्रा में यात्रियों को जाम के झंझट से काफी हद तक निजात मिल सकेगी.
अन्य मठ-मंदिरों में भी तीर्थाटन की उम्मीद शीतकालीन यात्रा शुरू होने से यात्रा मागरे से जुड़े शक्तिपीठों व मठों में भी तीर्थाटन बढ़ने की उम्मीद की जा सकती है.
ग्रीष्मकालीन यात्रा में यात्रियों की भीड़ बढ़ने से अक्सर यात्री मागरे में अन्य पीठों व मठों के दर्शन नहीं कर पाते हैं. शक्तिपीठों व मठों में सुरकंडा मंदिर, कुंजापुरी, चंद्रबदनी, धारी देवी, कालीमठ, नृसिंह मंदिर को भी इससे जोड़ा जा सकता है. हालांकि अभी सरकार द्वारा शक्तिपीठों व अन्य मठों को यात्रा से जोड़ने को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं की गई है.
शीतकालीन यात्रा को लेकर पूर्व में भी प्रयास हुए हैं. मगर हर बार सरकारी प्रयास शिथिल रहे हैं. सरकार ने पुन: पहल की है जो कि स्वागतयोग्य है. मगर इसके लिए सरकार को पूरी तैयारियां करनी जरूरी हैं. यात्रा के प्रचार-प्रसार को लेकर यदि कारगर कदम उठाये जाते हैं तो यात्रा चल सकती है. जिससे परिवहन सहित अन्य व्यवसायियों को निश्चित रूप से लाभ मिल सकेगा.
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